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यो वां॑ य॒ज्ञैः श॑शमा॒नो ह॒ दाश॑ति क॒विर्होता॒ यज॑ति मन्म॒साध॑नः। उपाह॒ तं गच्छ॑थो वी॒थो अ॑ध्व॒रमच्छा॒ गिर॑: सुम॒तिं ग॑न्तमस्म॒यू ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vāṁ yajñaiḥ śaśamāno ha dāśati kavir hotā yajati manmasādhanaḥ | upāha taṁ gacchatho vītho adhvaram acchā giraḥ sumatiṁ gantam asmayū ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। वा॒म्। य॒ज्ञैः। श॒श॒मा॒नः। ह॒। दाश॑ति। क॒विः। होता॑। यज॑ति। म॒न्म॒ऽसाध॑नः। उप॑। अह॑। तम्। गच्छ॑थः। वी॒थः। अ॒ध्व॒रम्। अच्छ॑। गिरः॑। सु॒ऽम॒तिम्। ग॒न्त॒म्। अ॒स्म॒यू इत्य॑स्म॒ऽयू ॥ १.१५१.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:151» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशको ! (यः) जो (शशमानः) सब विषयों को पार होता हुआ (कविः) अत्यन्त बुद्धियुक्त (होता) सब विषयों को ग्रहण करनेवाला (मन्मसाधनः) जिसका विज्ञान ही साधन वह सज्जन (यज्ञैः) मिलके किये हुए कर्मों से (वाम्) तुम दोनों को सुख (दाशति) देता है और (यजति) तुम्हारा सत्कार करता है (तं, ह) उसी के (अस्मयू) हमारी इच्छा करते हुए तुम (उप, गच्छथः) सङ्ग पहुँचे हो वे आप (अह) बे रोक-टोक (अध्वरम्) हिंसारहित व्यवहार को (गन्तुम्) प्राप्त होओ और (गिरः) सुन्दर शिक्षा की हुई वाणी और (सुमतिम्) सुन्दर विशेष बुद्धि को (अच्छ) उत्तम रीति से (वीथः) चाहो ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - जो इस संसार में सत्य विद्या की कामना करनेवाले सबके लिये विद्या दान से उत्तम शीलपन का सम्पादन करते हुए सुख देते हैं, वे सबको सत्कार करने योग्य हैं ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ यः शशमानः कविर्होता मन्मसाधनो यज्ञैर्वां सुखं दाशति यजति च तं हाऽस्मयू युवामुपागच्छथो तावह अध्वरं गन्तं गिरः सुमतिं चाच्छ वीथः ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (वाम्) युवाभ्याम् (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः (शशमानः) प्लवमानः (ह) किल (दाशति) ददाति (कविः) महाप्रज्ञः (होता) आदाता (यजति) सत्करोति (मन्मसाधनः) मन्म विज्ञानं साधनं यस्य सः (उप) (अह) विनिग्रहे (तम्) (गच्छथः) प्राप्नुथः (वीथः) कामयेथाम् (अध्वरम्) अहिंसामयं व्यवहारम् (अच्छ) उत्तमरीत्या। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (गिरः) सुशिक्षिता वाणीः (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (गन्तम्) प्राप्नुतम् (अस्मयू) अस्मानिच्छन्तौ ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - येऽत्र सत्यविद्याकामुकाः सर्वेभ्यो विद्यादानेन सुशीलतां सम्पादयन्तः सुखं प्रददति ते सर्वैः सत्कर्त्तव्याः ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे या जगात सत्य विद्येची कामना करतात, सर्वांसाठी विद्यादानाने उत्तम शील संपादन करून सुख देतात त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ७ ॥