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आ वा॑मृ॒ताय॑ के॒शिनी॑रनूषत॒ मित्र॒ यत्र॒ वरु॑ण गा॒तुमर्च॑थः। अव॒ त्मना॑ सृ॒जतं॒ पिन्व॑तं॒ धियो॑ यु॒वं विप्र॑स्य॒ मन्म॑नामिरज्यथः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vām ṛtāya keśinīr anūṣata mitra yatra varuṇa gātum arcathaḥ | ava tmanā sṛjatam pinvataṁ dhiyo yuvaṁ viprasya manmanām irajyathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। वा॒म्। ऋ॒ताय॑। के॒शिनीः॑। अ॒नू॒ष॒त॒। मित्र॑। यत्र॑। वरु॑ण। गा॒तुम्। अर्च॑थः। अव॑। त्मना॑। सृ॒जत॑म्। पिन्व॑तम्। धियः॑। यु॒वम्। विप्र॑स्य। मन्म॑नाम्। इ॒र॒ज्य॒थः॒ ॥ १.१५१.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:151» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्र) मित्र और (वरुण) श्रेष्ठ विद्वानो ! (यत्र) जहाँ (ऋताय) सत्याचरण के लिये (केशिनीः) चमक-दमकवाली सुन्दरी स्त्री (वाम्) तुम दोनों की (अनूषत) स्तुति करें वहाँ (युवम्) तुम दोनों (गातुम्) सत्य स्तुति को (आ, अर्चथः) अच्छे प्रकार प्रशंसित करते हो (त्मना) अपने से (विप्रस्य) धीरबुद्धि युक्त सज्जन की (धियः) उत्तम बुद्धियों को (अव, सृजतम्) निरन्तर उत्पन्न करो और (पिन्वतम्) उपदेश द्वारा सींचो (मन्मनाम्) और मान करती हुई को (इरज्यथः) ऐश्वर्ययुक्त करो ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - जो यहाँ प्रशंसायुक्त स्त्रियाँ और जो पुरुष हैं वे अपने समान पुरुष-स्त्रियों के साथ संयोग करें, ब्रह्मचर्य से और विद्या से विशेष ज्ञान की उन्नति कर ऐश्वर्य को बढ़ावें ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मित्र वरुण च विद्वांसौ यत्रर्ताय केशिनीः सुन्दरस्त्रियो वां युवामनूषत तत्र युवं गातुमार्चथः। त्मना विप्रस्य धियोवसृजतं पिन्वतं च मन्मनामिरज्यथः ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (वाम्) युवाम् (ऋताय) सत्याचाराय (केशिनीः) रश्मिमतीः (अनूषत) स्तुवत (मित्र) सखे (यत्र) (वरुण) वर (गातुम्) सत्यां स्तुतिम् (अर्चथः) सत्कुरुथः (अव) (त्मना) आत्मना (सृजतम्) निष्पादयतम् (पिन्वतम्) सिञ्चतम् (धियः) प्रज्ञाः (युवम्) युवाम् (विप्रस्य) मेधाविनः (मन्मनाम्) मन्यमानाम् (इरज्यथः) ऐश्वर्ययुक्तां कुरुथः ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - या इह प्रशंसिताः स्त्रियो ये च पुरुषास्ते स्वसदृशैस्सह संयुज्यन्तां ब्रह्मचर्य्येण विद्यया विज्ञानमुन्नीयैश्वर्यं वर्द्धयन्तु ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रशंसायुक्त स्त्रिया व पुरुष यांनी आपल्या सारख्या पुरुष स्त्रियांबरोबर संयोग करावा. ब्रह्मचर्याने व विद्येने विशेष ज्ञानाचे उन्नयन करावे व ऐश्वर्य वाढवावे. ॥ ६ ॥