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तं पृ॑च्छता॒ स ज॑गामा॒ स वे॑द॒ स चि॑कि॒त्वाँ ई॑यते॒ सा न्वी॑यते। तस्मि॑न्त्सन्ति प्र॒शिष॒स्तस्मि॑न्नि॒ष्टय॒: स वाज॑स्य॒ शव॑सः शु॒ष्मिण॒स्पति॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam pṛcchatā sa jagāmā sa veda sa cikitvām̐ īyate sā nv īyate | tasmin santi praśiṣas tasminn iṣṭayaḥ sa vājasya śavasaḥ śuṣmiṇas patiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। पृ॒च्छ॒त॒। सः। ज॒गा॒म॒। सः। वे॒द॒। सः। चि॒कि॒त्वान्। ई॒य॒ते॒। सः। नु। ई॒य॒ते॒। तस्मि॑न्। स॒न्ति॒। प्र॒ऽशिषः॑। तस्मि॑न्। इ॒ष्टयः॑। सः। वाज॑स्य। शव॑सः। शु॒ष्मिणः॑। पतिः॑ ॥ १.१४५.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:145» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब एक सौ पैंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में उपदेश करने योग्य और उपदेश करनेवालों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (सः) वह विद्वान् सत्य मार्ग में (जगाम) चलता है (सः) वह (वेद) ब्रह्म को जानता है (सः) वह (चिकित्वान्) विज्ञानयुक्त सुखों को (ईयते) प्राप्त होता (सः) वह (नु) शीघ्र अपने कर्त्तव्य को (ईयते) प्राप्त होता है (तस्मिन्) उसमें (प्रशिषः) उत्तम-उत्तम शिक्षा (सन्ति) विद्यमान हैं (तस्मिन्) उसमें (इष्टयः) सत्सङ्ग विद्यमान हैं (सः) वह (वाजस्य) विज्ञान का (शवसः) बल वा (शुष्मिणः) बलयुक्त सेनासमूह वा राज्य का (पतिः) पालनेवाला स्वामी है, (तम्) उसको तुम (पृच्छत) पूछो ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्या और अच्छी शिक्षायुक्त, धार्मिक और यत्नशील सबका उपकारी, सत्य की पालना करनेवाला विद्वान् हो, उसके आश्रय जो पढ़ाना और उपदेश हैं, उनसे सब मनुष्य चाहे हुए काम और विनय को प्राप्त हों ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेश्योपदेशकगुणानाह ।

अन्वय:

हे मनुष्याः स सत्यमार्गे जगाम स ब्रह्म वेद स चिकित्वान् सुखानीयते सान्वीयते तस्मिन् प्रशिषः सन्ति तस्मिन्निष्टयः सन्ति स वाजस्य शवसः शुष्मिणः पतिरस्ति तं यूयं पृच्छत ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तं) पूर्वमन्त्रप्रतिपादितं विद्वांसम् (पृच्छत) अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (सः) (जगाम) गच्छति (सः) (वेद) जानाति (सः) (चिकित्वान्) विज्ञानयुक्तः (ईयते) प्राप्नोति (सः) (नु) सद्यः (ईयते) प्राप्नोति (तस्मिन्) (सन्ति) (प्रशिषः) प्रकृष्टानि शासनानि (तस्मिन्) (इष्टयः) सत्सङ्गतयः (सः) (वाजस्य) विज्ञानमयस्य (शवसः) बलस्य (शुष्मिणः) बहुबलयुक्तस्य सैन्यस्य राज्यस्य वा (पतिः) स्वामी ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - यो विद्यासुशिक्षायुक्तो धार्मिकः प्रयत्नशीलः सर्वोपकारी सत्यस्य पालक आप्तो विद्वान् भवेत् तदाश्रयाध्यापनोपदेशैः सर्वे मनुष्याः इष्टविनयप्राप्ताः सन्तु ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात उपदेश करणारे व ऐकणारे यांच्या कर्तव्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - जो विद्या व सुशिक्षण यांनी युक्त, धार्मिक व प्रयत्नशील तसेच सर्वांवर उपकार करणारा, सत्याचे पालन करणारा विद्वान असतो, त्याच्या आश्रयाने अध्यापन व उपदेश ग्रहण करून सर्व माणसांनी इच्छित काम करून विनयी बनावे. ॥ १ ॥