समि॑द्धो अग्न॒ आ व॑ह दे॒वाँ अ॒द्य य॒तस्रु॑चे। तन्तुं॑ तनुष्व पू॒र्व्यं सु॒तसो॑माय दा॒शुषे॑ ॥
samiddho agna ā vaha devām̐ adya yatasruce | tantuṁ tanuṣva pūrvyaṁ sutasomāya dāśuṣe ||
सम्ऽइ॑द्धः। अ॒ग्ने॒। आ। व॒ह॒। दे॒वान्। अ॒द्य। य॒तऽस्रु॑चे। तन्तु॑म्। त॒नु॒ष्व॒। पू॒र्व्यम्। सु॒तऽसो॑माय। दा॒शुषे॑ ॥ १.१४२.१
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तेरह ऋचावाले एकसौ ब्यालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और अध्येता के विषय को कहते हैं ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाध्यापकाध्येतृविषयमाह ।
हे अग्ने पावक इव समिद्धो विद्वांस्त्वमद्य यतस्रुचे सुतसोमाय दाशुषे देवानावह पूर्व्यं तन्तुं तनुष्व ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अध्यापक अध्येता यांचे गुण व विद्येची प्रशंसा असल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥