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भूष॒न्न योऽधि॑ ब॒भ्रूषु॒ नम्न॑ते॒ वृषे॑व॒ पत्नी॑र॒भ्ये॑ति॒ रोरु॑वत्। ओ॒जा॒यमा॑नस्त॒न्व॑श्च शुम्भते भी॒मो न शृङ्गा॑ दविधाव दु॒र्गृभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūṣan na yo dhi babhrūṣu namnate vṛṣeva patnīr abhy eti roruvat | ojāyamānas tanvaś ca śumbhate bhīmo na śṛṅgā davidhāva durgṛbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भूष॑न्। न। यः। अधि॑। ब॒भ्रूषु॑। नम्न॑ते। वृषा॑ऽइव। पत्नीः॑। अ॒भि। ए॒ति॒। रोरु॑वत्। ओ॒जा॒यमा॑नः। त॒न्वः॑। च॒। शु॒म्भ॒ते॒। भी॒मः। न। शृङ्गा॑। द॒वि॒धा॒व॒। दुः॒ऽगृभिः॑ ॥ १.१४०.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:140» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन मनुष्य इस जगत् में शोभायमान होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (भूषन्) अलंकृत करता हुआ (न) सा (बभ्रूषु) धर्म की धारणा करनेवालियों में (अधि, नम्नते) अधिक नम्र होता वा (पत्नीः) यज्ञसम्बन्ध करनेवाली स्त्रियों को (रोरुवत्) अत्यन्त बातचीत कह सुनाता वा (वृषेव) बैल के समान बल को और (दुर्गृभिः) दुःख से पकड़ने योग्य (भीमः) भयङ्कर सिंह (शृङ्गा) सींगो को (न) जैसे वैसे (ओजायमानः) बैल के समान आचरण करता हुआ (तन्वः) शरीर को (च) भी (शुम्भते) सुन्दर शोभायमान करता वा (दविधाव) निरन्तर चलाता अर्थात् उनसे चेष्टा करता वह अत्यन्त सुख को (अभि, एति) प्राप्त होता है ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य सिंह के तुल्य शत्रुओं से अग्राह्य, बैल के तुल्य अति बली, पुष्ट, नीरोग शरीरवाले, बड़ी ओषधियों के सेवक सब सज्जनों को शोभित करें, वे इस जगत् में शोभायमान होते हैं ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

के जना इह शोभन्त इत्याह।

अन्वय:

यो भूषन्नेव बभ्रूष्वधिनम्नते पत्नीरोरुवद्वृषेव बलं दुर्गृभिर्भीमः सिंहः शृङ्गा नेवोजायमानस्तन्वश्च शुम्भते दविधाव सोऽत्यन्तं सुखमभ्येति ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूषन्) अलंकुर्वन् (न) इव (यः) (अधि) (बभ्रूषु) धर्मं धरन्तीषु (नम्नते) (वृषेव) यथा वृषा (पत्नीः) यज्ञसम्बन्धिनीः स्त्रियः (अभि) (एति) प्राप्नोति (रोरुवत्) अतिशयेन शब्दयन् (ओजायमानः) ओज इवाचरन् (तन्वः) तनूः शरीराणि (च) (शुम्भते) सुशोभते। अत्र व्यत्येनात्मनेपदम्। (भीमः) भयङ्करः (न) इव (शृङ्गा) शृङ्गाणि (दविधाव) भृशं चालयति (दुर्गृभिः) दुःखेन ग्रहीतुं योग्यैः ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये सिंहवच्छत्रुदुर्ग्राह्या वृषभवद्बलिष्ठाः पुष्टाऽऽरोग्यशरीरा महौषधिसेविनः सर्वान् सज्जनान् भूषयेयुस्तेऽत्र सुशोभन्ते ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे सिंहाप्रमाणे शत्रूंकडून बाधित न होणारी, बैलांप्रमाणे अत्यंत बलवान, पुष्ट, निरोगी शरीर असणारी उत्तम औषध सेवन करणारी, सर्व सज्जनांमध्ये भूषण ठरतात, ती या जगात शोभून दिसतात. ॥ ६ ॥