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घृ॒तपृ॑ष्ठा मनो॒युजो॒ ये त्वा॒ वह॑न्ति॒ वह्न॑यः। आ दे॒वान्त्सोम॑पीतये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ghṛtapṛṣṭhā manoyujo ye tvā vahanti vahnayaḥ | ā devān somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

घृ॒तऽपृ॑ष्ठाः। मनः॒ऽयुजः॑। ये। त्वा॒। वह॑न्ति। वह्न॑यः। आ। दे॒वान्। सोम॑ऽपीतये॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:14» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर के रचे हुए बिजुली आदि पदार्थ कैसे गुणवाले हैं, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (ये) जो युक्ति से संयुक्त किये हुए (घृतपृष्ठाः) जिनके पृष्ठ अर्थात् आधार में जल है (मनोयुजः) तथा जो उत्तम ज्ञान से रथों में युक्त किये जाते (वह्नयः) वार्त्ता पदार्थ वा यानों को दूर देश में पहुँचानेवाले अग्नि आदि पदार्थ हैं, जो (सोमपीतये) जिसमें सोम आदि पदार्थों का पीना होता है, उस यज्ञ के लिये (त्वा) उस भूषित करने योग्य यज्ञ को और (देवान्) दिव्यगुण दिव्यभोग और वसन्त आदि ऋतुओं को (आवहन्ति) अच्छी प्रकार प्राप्त करते हैं, उनको सब मनुष्यों को यथार्थ जानके अनेक कार्य्यों को सिद्ध करने के लिये ठीक-ठीक प्रयुक्त करना चाहिये॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मेघ आदि पदार्थ हैं, वे ही जल को ऊपर नीचे अर्थात् अन्तरिक्ष को पहुँचाते और वहाँ से वर्षाते हैं, और ताराख्य यन्त्र से चलाई हुई बिजुली मन के वेग के समान वार्त्ताओं को एकदेश से दूसरे देश में प्राप्त करती है। इसी प्रकार सब सुखों को प्राप्त करानेवाले ये ही पदार्थ हैं, ऐसी ईश्वर की आज्ञा है॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वररचिता विद्युदादयः कीदृग्गुणाः सन्तीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे विद्वांसो ! य इमे युक्त्या सम्प्रयोजिता घृतपृष्ठा मनोयुजो वह्नयो विद्युदादयः सोमपीतये त्वा तमेतं यज्ञं देवाँश्चावहन्ति, ते सर्वैर्मनुष्यैर्यथावद्विदित्वा कार्य्यसिद्धये सम्प्रयोज्याः॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (घृतपृष्ठाः) घृतमुदकं पृष्ठ आधारे येषां ते (मनोयुजः) मनसा विज्ञानेन युज्यन्ते ते। अत्र सत्सूद्विष० (अष्टा०३.२.६१) अनेन कृतो बहुलम् इति कर्मणि क्विप्। (ये) विद्युदादयश्चतुर्थमन्त्रोक्ताः (त्वा) तमलं कर्त्तुं योग्यं यज्ञम् (वहन्ति) प्रापयन्ति। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (वह्नयः) वहन्ति प्रापयन्ति वार्त्ताः पदार्थान् यानानि च यैस्ते। अत्र वहिश्रिश्रुयु०। (उणा०४.५१) अनेन करणे निः प्रत्ययः। (आ) समन्तात् क्रियायोगे (देवान्) दिव्यगुणान् भोगानृतून्वा। ऋतवो वै देवाः। (श०ब्रा०७.२.२.२६) (सोमपीतये) सोमानां पदार्थानां पीतिः पानं यस्मिंस्तस्मै यज्ञाय॥६॥
भावार्थभाषाः - ये स्तनयित्न्वादयस्त एव जलमुपरि गमयन्त्यागमयन्ति वा ताराख्येन यन्त्रेण सञ्चालिता विद्युन्मनोवेगवद्वार्त्ता देशान्तरं प्रापयति। एवं सर्वेषां पदार्थानां सुखानां च प्रापका एत एव सन्तीतीश्वराज्ञापनम्॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मेघ जलाला वर खाली नेतो अर्थात अंतरिक्षात पोहोचवितो, तेथून वृष्टी करवितो, ताराख्य (तार) यंत्राने चालविलेली विद्युत मनाच्या वेगाप्रमाणे एका देशाहून दुसऱ्या देशाला वार्ता पोहोचविते. या प्रकारे सर्व सुख देणारे हेच पदार्थ आहेत - अशी ईश्वराची आज्ञा आहे. ॥ ६ ॥