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अवा॑सां मघवञ्जहि॒ शर्धो॑ यातु॒मती॑नाम्। वै॒ल॒स्था॒न॒के अ॑र्म॒के म॒हावै॑लस्थे अर्म॒के ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avāsām maghavañ jahi śardho yātumatīnām | vailasthānake armake mahāvailasthe armake ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑। आ॒सा॒म्। म॒घ॒ऽव॒न्। ज॒हि॒। शर्धः॑। या॒तु॒ऽमती॑नाम्। वै॒ल॒ऽस्था॒न॒के। अ॒र्भ॒के। म॒हाऽवै॑लस्थे। अ॒र्म॒के ॥ १.१३३.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:133» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:19» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर शत्रुओं की सेना कैसे मारनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) परम धनयुक्त राजन् ! (अर्मके) जो दुःख पहुँचाने हारा और (वैलस्थानके) जिसमें विलयुक्त स्थान हैं उनके समान (अर्मके) दुःख पहुँचानेहारे (महावैलस्थे) बड़े-बड़े गढ़ेलों से युक्त स्थान में (आसाम्) इन (यातुमतीनाम्) हिंसक सेनाओं के (शर्धः) बल को (अव, जहि) छिन्न-भिन्न करो ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - सेनावीरों को चाहिये कि शत्रुओं को सेनाओं को अतीव दुःख से जाने योग्य गढ़ेले आदि से युक्त स्थान में गिरा कर मारें ॥ ३ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः शत्रुसेनाः कथं हन्तव्या इत्याह ।

अन्वय:

हे मघवन् अर्मके वैलस्थानक इवार्मके महावैलस्थ आसां यातुमतीनां शर्धोऽव जहि ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अव) (आसाम्) वक्ष्यमाणानाम् (मघवन्) परमधनयुक्त (जहि) (शर्धः) बलम् (यातुमतीनाम्) हिंस्राणां सेनानाम्। (वैलस्थानके) वैलानि विलयुक्तानि स्थानानि यस्मिँस्तँस्मिन् (अर्मके) दुःखप्रापके (महावैलस्थे) महागर्त्तयुक्ते (अर्मके) दुःखप्रापके ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - सेनावीरैः शत्रुसेना अतिदुर्गे गर्तादियुक्ते स्थले निपात्य हन्तव्या ॥ ३ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सेनेतील वीरांनी शत्रूसेनेला भयंकर दरीमध्ये ढकलून मारून टाकावे. ॥ ३ ॥