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इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ति॒स्रो दे॒वीर्म॑यो॒भुवः॑। ब॒र्हिः सी॑दन्त्व॒स्रिधः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iḻā sarasvatī mahī tisro devīr mayobhuvaḥ | barhiḥ sīdantv asridhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इळा॑। सर॑स्वती। म॒ही। ति॒स्रः। दे॒वीः। म॒यः॒ऽभुवः॑। ब॒र्हिः। सी॒द॒न्तु॒। अ॒स्रिधः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:13» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

वहाँ तीन प्रकार की क्रिया का प्रयोग करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! तुम लोग एक (इडा) जिससे स्तुति होती, दूसरी (सरस्वती) जो अनेक प्रकार विज्ञान का हेतु, और तीसरी (मही) बड़ों में बड़ी पूजनीय नीति है, वह (अस्रिधः) हिंसारहित और (मयोभुवः) सुखों का सम्पादन करानेवाली (देवी) प्रकाशवान् तथा दिव्य गुणों को सिद्ध कराने में हेतु जो (तिस्रः) तीन प्रकार की वाणी है, उसको (बर्हिः) घर-घर के प्रति (सीदन्तु) यथावत् प्रकाशित करो॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को इडा जो कि पठनपाठन की प्रेरणा देनेहारी, सरस्वती जो उपदेशरूप ज्ञान का प्रकाश करने, और मही जो सब प्रकार से प्रशंसा करने योग्य है, ये तीनों वाणी कुतर्क से खण्डन करने योग्य नहीं हैं, तथा सब सुख के लिये तीनों प्रकार की वाणी सदैव स्वीकार करनी चाहिये, जिससे निश्चलता से अविद्या का नाश हो॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्र त्रिधा क्रिया प्रयोज्येत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे विद्वांसो भवन्त इडा सरस्वती मह्यस्रिधो मयोभुवस्तिस्रो देवीर्बर्हिः प्रतिगृहादिकं सीदन्तु सादयन्तु॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इडा) ईड्यते स्तूयतेऽनया सा वाणी। इडेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) अत्र ‘इड’ धातोः कर्मणि बाहुलकादौणादिकोऽन्प्रत्ययो ह्रस्वत्वं च। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति गुणादेशाभावश्च। अत्र सायणाचार्य्येण टापं चैव हलन्तानामित्यशास्त्रीयवचनस्वीकारादशुद्धमेवोक्तम्। (सरस्वती) सरो बहुविधं विज्ञानं विद्यते यस्याः सा। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्। (मही) महती पूज्या नीतिर्भूमिर्वा (तिस्रः) त्रिप्रकारकाः (देवीः) देदीप्यमाना दिव्यगुणहेतवः। अत्र वा छन्दसि इति जसः पूर्वसवर्णत्वम्। (मयोभुवः) या मयः सुखं भावयन्ति ताः। मय इति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (बर्हिः) प्रतिगृहादिकम्। बर्हिरिति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.२) तस्मादत्र ज्ञानार्थो गृह्यते। (सीदन्तु) सादयन्तु। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (अस्रिधः) अहिंसनीयः॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरिडापठनपाठनप्रेरिका सरस्वती ज्ञानप्रकाशिकोपदेशाख्या मही सर्वथा पूज्या कुतर्केण ह्यखण्डनीया सर्वसुखा नीतिश्चेति त्रिविधा सदा स्वीकार्य्या, यतः खल्वविद्यानाशो विद्याप्रकाशश्च भवेत्॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी ‘इडा’ जी अध्ययन अध्यापनाला प्रेरणा देणारी, ‘सरस्वती’ जी उपदेश करून ज्ञानाचा प्रकाश करणारी व ‘मही’ जी सर्व प्रकारे प्रशंसनीय आहे या तिन्ही वाणी कुतर्काने खंडन करण्यायोग्य नाहीत. सर्व सुखांसाठी तीन प्रकारच्या वाणींचा सदैव स्वीकार केला पाहिजे. ज्यामुळे निश्चितपणे अविद्येचा नाश व विद्येचा प्रकाश होईल. ॥ ९ ॥