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ता सु॑जि॒ह्वा उप॑ह्वये॒ होता॑रा॒ दैव्या॑ क॒वी। य॒ज्ञं नो॑ यक्षतामि॒मम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā sujihvā upa hvaye hotārā daivyā kavī | yajñaṁ no yakṣatām imam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। सु॒ऽजि॒ह्वौ। उप॑। ह्व॒ये॒। होता॑रा। दैव्या॑। क॒वी इति॑। य॒ज्ञम् नः॒। य॒क्ष॒ता॒म्। इ॒मम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:13» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में उन अग्नियों का उपदेश किया है कि जो शुद्ध करनेवाले विद्युद्रूप से अप्रसिद्ध और प्रत्यक्ष स्थूलरूप से प्रसिद्ध हैं-

पदार्थान्वयभाषाः - मैं क्रियाकाण्ड का अनुष्ठान करनेवाला इस घर में जो (नः) हमारे (इमम्) प्रत्यक्ष (यज्ञम्) हवन वा शिल्पविद्यामय यज्ञ को (यक्षताम्) प्राप्त करते हैं, उन (सुजिह्वौ) सुन्दर पूर्वोक्त सात जीभवाले (होतारा) पदार्थों का ग्रहण करने (कवी) तीव्र दर्शन देने और (दैव्या) दिव्य पदार्थों में रहनेवाले प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध अग्नियों को (उपह्वये) उपकार में लाता हूँ॥८॥
भावार्थभाषाः - जैसे एक बिजुली वेग आदि अनेक गुणवाला अग्नि है, इसी प्रकार प्रसिद्ध अग्नि भी है। तथा ये दोनों सकल पदार्थों के देखने में और अच्छे प्रकार क्रियाओं में नियुक्त किये हुए शिल्प आदि अनेक कार्य्यों की सिद्धि के हेतु होते हैं। इसलिये इन्हों से मनुष्यों को सब उपकार लेने चाहियें॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्र शोधकौ प्रसिद्धाप्रसिद्धावग्नी उपदिश्येते।

अन्वय:

अहं क्रियाकाण्डाऽनुष्ठाताऽस्मिन् गृहे यौ नोऽस्माकमिमं यज्ञं यक्षतां सङ्गमयतस्तौ सुजिह्वौ होतारौ कवी दैव्यावुपह्वये सामीप्ये स्पर्द्धे॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ। अत्र सर्वत्र द्वितायाया द्विवचनस्य स्थाने सुपां सुलुग्० इत्याच् आदेशः। (सुजिह्वौ) शोभनाः पूर्वोक्ताः सप्त जिह्वा ययोस्तौ (उप) समीपगमनार्थे (ह्वये) स्पर्द्धे (होतारा) आदातारौ (दैव्या) दिव्येषु पदार्थेषु भवौ। देवाद्यञञौ। (अष्टा०४.१.८५) इति वार्त्तिकेन प्राग्दीव्यतीयेष्वर्थेषु यञ् प्रत्ययः। (कवी) क्रान्तदर्शनौ (यज्ञम्) हवनशिल्पविद्यामयम् (नः) अस्माकम् (यक्षताम्) यजतः सङ्गमयतः। अत्र सिब्बहुलं लेटि इति बहुलग्रहणाल्लोटि प्रथमपुरुषस्य द्विवचने शपः पूर्वं सिप्। (इमम्) प्रत्यक्षम्॥८॥
भावार्थभाषाः - यथैका विद्युद्वेगाद्यनेकदिव्यगुणयुक्ताऽस्त्येवं प्रसिद्धोऽप्यग्निर्वर्त्तते। एतौ सकलपदार्थदर्शनहेतू अग्नी सम्यङ् नियुक्तौ शिल्पाद्यनेककार्य्यसिद्धिहेतू भवतस्तस्मादेताभ्यां मनुष्यैः सर्वोपकारा ग्राह्या इति॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा विद्युत हा एक वेगवान अग्नी आहे तसा प्रत्यक्ष प्रसिद्ध दुसरा अग्नी आहे. हे दोन्ही पदार्थांचे दर्शन करविण्यात व क्रियेमध्ये नियुक्त केलेल्या शिल्प इत्यादी कार्याच्या सिद्धीचे कारण असतात. त्यासाठी माणसांनी त्यांचा उपयोग करून घेतला पाहिजे. ॥ ८ ॥