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नक्तो॒षासा॑ सु॒पेश॑सा॒ऽस्मिन्य॒ज्ञ उप॑ ह्वये। इ॒दं नो॑ ब॒र्हिरा॒सदे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

naktoṣāsā supeśasāsmin yajña upa hvaye | idaṁ no barhir āsade ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नक्तो॒षासा॑। सु॒ऽपेश॑सा। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। उप॑। ह्व॒ये॒। इ॒दम्। नः॒। ब॒र्हिः। आ॒ऽसदे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:13» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उक्त कर्म से दिनरात सुख होता है, सो अगले मन्त्र में प्रकाशित किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (अस्मिन्) इस घर तथा (यज्ञे) सङ्गत करने के कामों में (सुपेशसा) अच्छे रूपवाले (नक्तोषसा) रात्रिदिन को (उपह्वये) उपकार में लाता हूँ, जिस कारण (नः) हमारा (बर्हिः) निवासस्थान (आसदे) सुख की प्राप्ति के लिये हो॥७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि इस संसार में विद्या से सदैव उपकार लेवें, क्योंकि रात्रिदिन सब प्राणियों के सुख का हेतु होता है॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्रैतेनाहोरात्रे सुखं भवतीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

अहमस्मिन् गृहे यज्ञे सुपेशसौ नक्तोषसावुपह्वय उपस्पर्द्धे, यतो नोऽस्माकमिदं बर्हिरासदे भवेत्॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नक्तोषसा) नक्तं चोषाश्चाहश्च रात्रिश्च ते। अत्र सुपां सुलुग्० इति औकारस्थाने आकारादेशः। नक्तमिति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं०१.७) उषासा नक्तोषाश्च नक्ता चोषा व्याख्याता, नक्तेति रात्रिनामानक्ति भूतान्यवश्यायेनापि वा नक्ता व्यक्तवर्णा। (निरु०८.१०) (सुपेशसा) शोभनं सुखदं पेशो रूपं ययोस्ते। अत्र पूर्ववदाकारादेशः। पेश इति रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) (अस्मिन्) प्रत्यक्षे गृहे (यज्ञे) सङ्गते कर्त्तव्ये (उप) सामीप्ये (ह्वये) स्पर्द्धे (इदम्) प्रत्यक्षम् (नः) अस्माकम् (बर्हिः) निवासप्रापकं स्थानम्। बर्हिरिति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.२) अतः प्राप्त्यर्थो गृह्यते। (आसदे) समन्तात् सीदन्ति प्राप्नुवन्ति सुखानि यस्यां साऽऽसत्तस्यै॥७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरत्र विद्ययोपकृतेऽरात्रे सर्वप्राणिनां सुखहेतू भवत इति बोध्यम्॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणावे की या जगात विद्या उपकृत करणारी असून रात्रंदिवस ती सर्व प्राण्यांच्या सुखाचा हेतू असते. ॥ ७ ॥