मधु॑मन्तं तनूनपाद्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ नः कवे। अ॒द्या कृ॑णुहि वी॒तये॑॥
madhumantaṁ tanūnapād yajñaṁ deveṣu naḥ kave | adyā kṛṇuhi vītaye ||
मधु॑ऽमन्तम्। त॒नू॒ऽन॒पा॒त्। य॒ज्ञम्। दे॒वेषु॑। नः॒। क॒वे॒। अ॒द्य। कृ॒णु॒हि॒। वी॒तये॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी अगले मन्त्र में शरीर आदि की रक्षा करनेवाले भौतिक अग्नि के गुण वर्णन किये हैं-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः शरीरादिसंरक्षकाग्नेर्गुणा उपदिश्यन्ते।
यस्तूनपात्कविरग्निर्देवेषु सुखस्य वीतयेऽद्य नो मधुमन्तं यज्ञं कुणुहि कृणोति॥२॥