अव॑ सृजा वनस्पते॒ देव॑ दे॒वेभ्यो॑ ह॒विः। प्र दा॒तुर॑स्तु॒ चेत॑नम्॥
ava sṛjā vanaspate deva devebhyo haviḥ | pra dātur astu cetanam ||
अव॑। सृ॒ज॒। व॒न॒स्प॒ते॒। देव॑। दे॒वेभ्यः॑। ह॒विः। प्र। दा॒तुः। अ॒स्तु॒। चेत॑नम्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
वह अग्नि किससे प्रज्वलित हुआ इन कार्य्यों को सिद्ध करता है, इसका उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
सोऽग्निः केन प्रदीप्तः सन्नेत्कार्य्यं साधयतीत्युपदिश्यते।
अयं देवो वनस्पतिर्देवेभ्यस्तद्धविरवसृजति यत्प्रदातुः सर्वपदार्थशोधयितुर्विदुषश्चेतनमस्तु भवति॥११॥