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आग॑धिता॒ परि॑गधिता॒ या क॑शी॒केव॒ जङ्ग॑हे। ददा॑ति॒ मह्यं॒ यादु॑री॒ याशू॑नां भो॒ज्या॑ श॒ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āgadhitā parigadhitā yā kaśīkeva jaṅgahe | dadāti mahyaṁ yādurī yāśūnām bhojyā śatā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आऽग॑धिता। परि॑ऽगधिता। या। क॒शी॒काऽइ॑व। जङ्ग॑हे। ददा॑ति। मह्य॑म्। यादु॑री। याशू॑नाम्। भो॒ज्या॑। श॒ता ॥ १.१२६.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:126» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किनसे इस राज्य में क्या अवश्य पानी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (आगधिता) अच्छे प्रकार ग्रहण की हुई (परिगधिता) सब ओर से उत्तम-उत्तम गुणों से युक्त (जङ्गहे) अत्यन्त ग्रहण करने योग्य व्यवहार में (कशीकेव) पशुओं के ताड़ना देनेके लिये जो औगी होती है, उसके समान (याशूनाम्) अच्छा यत्न करनेवालों की (यादुरी) उत्तम यत्नवाली नीति (भोज्या) भोगने योग्य (शता) सैकड़ों वस्तु (मह्यम्) मुझे (ददाति) देती है, वह सबको स्वीकार करने योग्य है ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस नीति अर्थात् धर्म की चाल (से) अगणित सुख हों, वह सबको सिद्ध करनी चाहिये ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैः काऽत्र राज्येऽवश्यं प्राप्तव्येत्याह ।

अन्वय:

या आगधिता परिगधिता जङ्गहे कशीकेव याशूनां यादुरी शता भोज्या मह्यं ददाति सा सर्वैः स्वीकार्य्या ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आगधिता) समन्ताद्गृहीता। गध्यं गृह्णातेः। निरु० ५। १५। (परिगधिता) परितः सर्वतो गधिता शुभैर्गुणैर्युक्ता नीतिः। गध्यतिर्मिश्रीभावकर्मा। निरु० ५। १५। (या) (कशीकेव) यथा ताडनार्था कशीका (जङ्गहे) अत्यन्तं ग्रहीतव्ये (ददाति) (मह्यम्) (यादुरी) प्रयत्नशीला। अत्र यतधातोर्बाहुलकादौणादिक उरी प्रत्ययः तस्य दः। (याशूनाम्) प्रयतमानानाम्। अत्र यसु प्रयत्ने धातोर्बाहुलकादुण्प्रत्ययः सस्य शश्च। (भोज्या) भोक्तुं योग्यानि (शता) शतानि असंख्यातानि वस्तूनि ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यया नीत्याऽसंख्यातानि (सुखानि) स्युः सा सर्वैः संपादनीया ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या नीतीने अर्थात धर्माच्या चालीने अगणित सुख प्राप्त होते ते सर्वांनी सिद्ध केले पाहिजे. ॥ ६ ॥