वांछित मन्त्र चुनें

उप॑ क्षरन्ति॒ सिन्ध॑वो मयो॒भुव॑ ईजा॒नं च॑ य॒क्ष्यमा॑णं च धे॒नव॑:। पृ॒णन्तं॑ च॒ पपु॑रिं च श्रव॒स्यवो॑ घृ॒तस्य॒ धारा॒ उप॑ यन्ति वि॒श्वत॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upa kṣaranti sindhavo mayobhuva ījānaṁ ca yakṣyamāṇaṁ ca dhenavaḥ | pṛṇantaṁ ca papuriṁ ca śravasyavo ghṛtasya dhārā upa yanti viśvataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। क्ष॒र॒न्ति॒। सिन्ध॑वः। म॒यः॒ऽभुवः॑। ई॒जा॒नम्। च॒। य॒क्ष्यमा॑णम्। च॒। धे॒नवः॑। पृ॒णन्त॑म्। च॒। पपु॑रिम्। च॒। श्र॒व॒स्यवः॑। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। उप॑। य॒न्ति॒। वि॒श्वतः॑ ॥ १.१२५.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:125» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री-पुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सिन्धवः) बड़े नदों के समान (मयोभुवः) सुख की भावना करानेवाले मनुष्य और (धेनवः) दूध देनेहारी गौओं के समान विवाही हुई स्त्री वा धायी (ईजानम्) यज्ञ करते (च) और (यक्ष्यमाणम्) यज्ञ करनेवाले पुरुष के (उप, क्षरन्ति) समीप आनन्द वर्षावें वा जो (श्रवस्यवः) आप सुनने की इच्छा करते हुए विद्वान् (च) और विदुषी स्त्री (पृणन्तम्) पुष्ट होते (च) और (पपुरिम्) पुष्ट हुए (च) भी पुरुष को शिक्षा देते हैं, वे (विश्वतः) सब ओर से (घृतस्य) जल की (धाराः) धाराओं के समान सुखों को (उप, यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष और स्त्री गृहाश्रम में एक दूसरे के प्रिय आचरण और विद्याओं का अभ्यास करके सन्तानों को अभ्यास कराते हैं, वे निरन्तर सुखों को प्राप्त होते हैं ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीपुरुषौ किं कुर्यातामित्याह ।

अन्वय:

ये सिन्धवइव मयोभुवा जना धेनव इव पत्न्यो धात्र्यो वा ईजानं यक्ष्यमाणं चोपक्षरन्ति। ये श्रवस्यवो विद्वांसो विदुष्यश्च पृणन्तं च पपुरिं च शिक्षन्ते ते विश्वतो घृतस्य धारा इव सुखान्युपयन्ति प्राप्नुवन्ति ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उप) (क्षरन्ति) वर्षन्तु (सिन्धवः) नदा इव (मयोभुवः) सुखं भावुकाः (ईजानम्) यज्ञं कुर्वन्तम् (च) (यक्ष्यमाणम्) यज्ञं करिष्यमाणम् (च) (धेनवः) पयः प्रदा गाव इव (पृणन्तम्) पुष्यन्तम् (च) (पपुरिम्) पुष्टम् (च) (श्रवस्यवः) स्वयं श्रोतुमिच्छवः (घृतस्य) जलस्य (धाराः) (उप) (यन्ति) (विश्वतः) सर्वतः ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पुरुषाः स्त्रियश्च गृहाश्रमे परस्परस्य प्रियाचरणं कृत्वा विद्या अभ्यस्य सन्तानानभ्यासयन्ति ते सततं सुखान्यश्नुवते ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्त्री व पुरुष गृहस्थाश्रमात एकमेकांना प्रिय आचरण करतात व विद्येचा अभ्यास करून संतानांकडून अभ्यास करवून घेतात ते निरंतर सुख प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥