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सु॒गुर॑सत्सुहिर॒ण्यः स्वश्वो॑ बृ॒हद॑स्मै॒ वय॒ इन्द्रो॑ दधाति। यस्त्वा॒यन्तं॒ वसु॑ना प्रातरित्वो मु॒क्षीज॑येव॒ पदि॑मुत्सि॒नाति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sugur asat suhiraṇyaḥ svaśvo bṛhad asmai vaya indro dadhāti | yas tvāyantaṁ vasunā prātaritvo mukṣījayeva padim utsināti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽगुः। अ॒स॒त्। सु॒ऽहि॒र॒ण्यः। सु॒ऽअश्वः॑। बृ॒हत्। अ॒स्मै॒। वयः॑। इन्द्रः॑। द॒धा॒ति॒। यः। त्वा॒। आ॒ऽयन्त॑म्। वसु॑ना। प्रा॒तः॒ऽइ॒त्वः॒। मु॒क्षीज॑याऽइव। पदि॑म्। उ॒त्ऽसि॒नाति॑ ॥ १.१२५.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:125» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इस संसार में कौन धर्मात्मा और यशस्वी कीर्तिमान् होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रातरित्वः) प्रातःसमय से लेकर अच्छा यत्न करनेहारे (यः) जो (इन्द्रः) ऐश्वर्य्यवान् पुरुष (वसुना) उत्तम धन के साथ (आयन्तम्) आते हुए (त्वा) तुझको (दधाति) धारण करता (अस्मै) इस कार्य के लिये (बृहत्) बहुत (वयः) चिरकाल तक जीवन और (मुक्षीजयेव) जो मूँज से उत्पन्न होती उससे जैसे बाँधना बने वैसे साधन से (पदिम्) प्राप्त होते हुए धन को (उत्सिनाति) अत्यन्त बाँधता अर्थात् सम्बन्ध करता, वह (सुगुः) सुन्दर गौओं (सुहिरण्यः) अच्छे-अच्छे सुवर्ण आदि धनों और (स्वश्वः) उत्तम-उत्तम घोड़ोंवाला (असत्) होवे ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् पाये हुए शिष्यों को उत्तम शिक्षा अर्थात् अधर्म और विषय भोग की चञ्चलता के त्याग आदि के उपदेश से बहुत आयुर्दायुक्त विद्या और धनवाले करता है, वह इस संसार में उत्तम कीर्तिमान् होता है ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कोऽत्र धर्मात्मा यशस्वी जायत इत्याह ।

अन्वय:

हे प्रातरित्वो य इन्द्रो वसुना आयन्तं त्वा दधात्यस्मै बृहद्वयश्च मुक्षीजयेव पदिमुत्सिनाति स सुगुस्सुहिरण्यस्स्वश्वोऽसद्भवेत् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुगुः) शोभना गावो यस्य सः (असत्) भवेत् (सुहिरण्यः) शोभनानि हिरण्यानि यस्य सः (स्वश्वः) शोभना अश्वा यस्य सः (बृहत्) महत् (अस्मै) (वयः) चिरंजीवनम् (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (दधाति) (यः) (त्वा) त्वाम् (आयन्तम्) आगच्छन्तम् (वसुना) उत्तमेन द्रव्येण सह (प्रातरित्वः) प्रातःकालमारभ्य प्रयत्नकर्त्तः (मुक्षीजयेव) मुक्ष्या मुञ्जाया जायते सा मुक्षीजा तयेव (पदिम्) पद्यते गम्यते या श्रीस्ताम् (उत्सिनाति) उत्कृष्टतया बध्नाति ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - यो विद्वान् प्राप्तान् शिष्यान् सुशिक्षयाऽधर्मविषयलोलुपतात्यागोपदेशेन दीर्घायुषो विद्यावतः श्रीमतश्च करोति सोऽत्र पुण्यकीर्तिर्जायते ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो विद्वान त्याच्या शिष्यांना उत्तम शिक्षण देतो. अर्थात, अधर्म व विषय भोगाच्या चंचलतेचा त्याग इत्यादी उपदेश करून पुष्कळ आयुष्य देणारी विद्या देतो आणि धनवान करतो त्याची या जगात उत्तम कीर्ती होते. ॥ ॥