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भग॑स्य॒ स्वसा॒ वरु॑णस्य जा॒मिरुष॑: सूनृते प्रथ॒मा ज॑रस्व। प॒श्चा स द॑घ्या॒ यो अ॒घस्य॑ धा॒ता जये॑म॒ तं दक्षि॑णया॒ रथे॑न ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhagasya svasā varuṇasya jāmir uṣaḥ sūnṛte prathamā jarasva | paścā sa daghyā yo aghasya dhātā jayema taṁ dakṣiṇayā rathena ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भग॑स्य। स्वसा॑। वरु॑णस्य। जा॒मिः। उषः॑। सू॒नृ॒ते॒। प्र॒थ॒मा। ज॒र॒स्व॒। प॒श्चा। सः। द॒घ्याः॒। यः। अ॒घस्य॑। धा॒ता। जये॑म। तम्। दक्षि॑णया। रथे॑न ॥ १.१२३.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:123» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सूनृते ! सत्य आचरणयुक्त स्त्री तूँ (उषः) प्रातःसमय की वेला के समान वा (भगस्य) ऐश्वर्य्य की (स्वसा) बहिन के समान वा (वरुणस्य) उत्तम पुरुष की (जामिः) कन्या के समान (प्रथमा) प्रख्याति प्रशंसा को प्राप्त हुई विद्याओं की (जरस्व) स्तुति कर, (यः) जो (अघस्य) अपराध का (धाता) धारण करनेवाला हो (तम्) उसको (दक्षिणया) अच्छी सिखाई हुई सेना और (रथेन) विमान आदि यान से जैसे हम लोग (जयेम) जीतें वैसे तूँ (दघ्याः) उसका तिरस्कार कर, जो मनुष्य पापी हो (सः) वह (पश्चा) पीछा करने अर्थात् तिरस्कार करने योग्य है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। स्त्रियों को चाहिये कि अपने-अपने घर में ऐश्वर्य की उन्नति श्रेष्ठ रीति और दुष्टों का ताड़न निरन्तर किया करें ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे सूनृते त्वमुषरुषाइव भगस्य स्वसेव वरुणस्य जामिरिव प्रथमा सती विद्या जरस्व योऽघस्य धाता भवेत् तं दक्षिणया रथेन यथा वयं जयेम तथा स्वं दघ्याः। यो जनः पापी स्यात् स पश्चा तिरस्करणीयः ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भगस्य) ऐश्वर्य्यस्य (स्वसा) भगिनीव (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (जामिः) कन्येव (उषः) उषाः (सूनृते) सत्याचरणयुक्ते (प्रथमा) (जरस्व) स्तुहि (पश्चा) पश्चात् (सः) (दघ्याः) तिरस्कुरु (यः) (अघस्य) पापस्य (धाता) (जयेम) (तम्) (दक्षिणया) सुशिक्षितया सेनया (रथेन) विमानादियानेन ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। स्त्रीभिः स्वस्वगृह ऐश्वर्य्योन्नतिः श्रेष्ठा रीतिर्दुष्टताडनं च सततं कार्य्यम् ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. स्त्रियांनी सतत आपापल्या घरात ऐश्वर्य वाढवावे. श्रेष्ठ रीतीने चालावे तसेच दुष्टांचे ताडन करावे. ॥ ५ ॥