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गृ॒हंगृ॑हमह॒ना या॒त्यच्छा॑ दि॒वेदि॑वे॒ अधि॒ नामा॒ दधा॑ना। सिषा॑सन्ती द्योत॒ना शश्व॒दागा॒दग्र॑मग्र॒मिद्भ॑जते॒ वसू॑नाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gṛhaṁ-gṛham ahanā yāty acchā dive-dive adhi nāmā dadhānā | siṣāsantī dyotanā śaśvad āgād agram-agram id bhajate vasūnām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गृ॒हम्ऽगृ॑हम्। अ॒ह॒ना। या॒ति॒। अच्छ॑। दि॒वेऽदि॑वे। अधि॑। नाम॑। दधा॑ना। सिसा॑सन्ती। द्यो॒त॒ना। शश्व॑त्। आ। अ॒गा॒त्। अग्र॑म्ऽअग्रम्। इत्। भ॒ज॒ते॒। वसू॑नाम् ॥ १.१२३.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:123» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो स्त्री जैसे प्रातःकाल की वेला (अहना) दिन वा व्याप्ति से (गृहंगृहम्) घर-घर को (अच्छाधियाति) उत्तम रीति के साथ अच्छी ऊपर से आती (दिवेदिवे) और प्रतिदिन (नाम) नाम (दधाना) धरती अर्थात् दिन-दिन का नाम आदित्यवार, सोमवार आदि धरती (द्योतना) प्रकाशमान (वसूनाम्) पृथिवी आदि लोकों के (अग्रमग्रम्) प्रथम-प्रथम स्थान को (भजते) भजती और (शश्वत्) निरन्तर (इत्) हो (आ, अगात्) आती है, वैसे (सिषासन्ती) उत्तम पदार्थ पति आदि को दिया चाहती हो, वह घर के काम को सुशोभित करनेहारी हो ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य की कान्ति-घाम सब पदार्थों के अगले-अगले भाग को सेवन करती और नियम से प्रत्येक समय प्राप्त होती है, वैसे स्त्री को भी होना चाहिये ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

या स्त्री यथोषा अहना गृहंगृहमच्छाधियाति दिवेदिवे नाम दधाना द्योतना सती वसूनामग्रमग्रं भजते शश्वदिदागात् तथा सिषासन्ती भवेत् सा गृहकार्य्यालङ्कारिणी स्यात् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गृहंगृहम्) निकतेनं निकेतनम् (अहना) दिवसेन व्याप्त्या वा। अत्र वाच्छन्दसीत्यल्लोपो न। (याति) (अच्छ) उत्तमरीत्या। अत्र निपातस्येति दीर्घः। (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (अधि) उपरिभावे (नाम) संज्ञाम् (दधाना) धरन्ती (सिषासन्ती) दातुमिच्छन्ती (द्योतना) प्रकाशमाना (शश्वत्) निरन्तरम् (आ) (अगात्) प्राप्नोति (अग्रमग्रम्) पुरःपुरः (इत्) एव (भजते) सेवते (वसूनाम्) पृथिव्यादीनाम् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यदीप्तिः पदार्थानां पुरोभागं सेवते नियमेन प्रतिसमयं प्राप्नोति तथा स्त्रियापि भवितव्यम् ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे जशी सूर्याची प्रभा सर्व पदार्थाच्या पुढच्या भागांना प्रकाशित करते व नियमाने प्रत्येक वेळी प्राप्त होते. तसे स्त्रीनेही असले पाहिजे. ॥ ४ ॥