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श्रु॒तं मे॑ मित्रावरुणा॒ हवे॒मोत श्रु॑तं॒ सद॑ने वि॒श्वत॑: सीम्। श्रोतु॑ न॒: श्रोतु॑रातिः सु॒श्रोतु॑: सु॒क्षेत्रा॒ सिन्धु॑र॒द्भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śrutam me mitrāvaruṇā havemota śrutaṁ sadane viśvataḥ sīm | śrotu naḥ śroturātiḥ suśrotuḥ sukṣetrā sindhur adbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रु॒तम्। मे॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। हवा॑। इ॒मा। उ॒त। श्रु॒त॒म्। सद॑ने। वि॒श्वतः॑। सी॒म्। श्रोतु॑। नः॒। श्रोतु॑ऽरातिः। सु॒ऽश्रोतुः॑। सु॒ऽक्षेत्रा॑। सिन्धुः॑। अ॒त्ऽभिः ॥ १.१२२.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:122» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रावरुणा) मित्र और उत्तम जन (सुश्रोतुः मे) मुझ अच्छे सुननेवाले के (इमा) इन (हवा) देने-लेने योग्य वचनों को (श्रुतम्) सुनो (उत) और (सदने) सभा वा (विश्वतः) सब ओर से (सीम्) मर्य्यादा में (श्रुतम्) सुनो अर्थात् वहाँ की चर्चा को समझो तथा (अद्भिः) जलों से जैसे (सिन्धुः) नदी (सुक्षेत्रा) उत्तम खेतों को प्राप्त हो वैसे (श्रोतुरातिः) जिसका सुनना दूसरे को देना है, वह (नः) हम लोगों के वचनों को (श्रोतु) सुने ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वानों को चाहिये कि सबके प्रश्नों को सुन के यथावत् उनका समाधान करें ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मित्रावरुणा सुश्रोतुर्मे इमा हवा श्रुतमुतापि सदने विश्वतः सीं श्रुतमद्भिः सिन्धुः सुक्षेत्रेव श्रोतुरातिर्नो वचनानि श्रोतु ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रुतम्) (मे) मम (मित्रावरुणा) सुहृद्वरौ (हवा) होतुमर्हाणि वचनानि (इमा) इमानि (उत) अपि (श्रुतम्) अत्र विकरणलुक्। (सदने) सदसि सभायाम् (विश्वतः) सर्वतः (सीम्) सीमायाम् (श्रोतु) शृणोतु (नः) अस्माकम् (श्रोतुरातिः) श्रोतुः श्रवणं रातिर्दानं यस्य (सुश्रोतुः) सुष्ठु शृणोति यस्तस्य (सुक्षेत्रा) शोभनानि क्षेत्राणि (सिन्धुः) (अद्भिः) जलैः ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वद्भिः सर्वेषां प्रश्नाञ्श्रुत्वा यथावत् समाधेयाः ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वानांनी सर्वांचे प्रश्न ऐकून त्यांचे यथायोग्य समाधान करावे. ॥ ६ ॥