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त्रि॒व॒न्धु॒रेण॑ त्रि॒वृता॒ रथे॑न त्रिच॒क्रेण॑ सु॒वृता या॑तम॒र्वाक्। पिन्व॑तं॒ गा जिन्व॑त॒मर्व॑तो नो व॒र्धय॑तमश्विना वी॒रम॒स्मे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

trivandhureṇa trivṛtā rathena tricakreṇa suvṛtā yātam arvāk | pinvataṁ gā jinvatam arvato no vardhayatam aśvinā vīram asme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रि॒ऽव॒न्धु॒रेण॑। त्रि॒ऽवृत॑। रथे॑न। त्रि॒ऽच॒क्रेण॑। सु॒ऽवृता॑। आ। या॒त॒म्। अ॒र्वाक्। पिन्व॑तम्। गाः। जिन्व॑तम्। अर्व॑तः। नः॒। व॒र्धय॑तम्। अ॒श्वि॒ना॒। वी॒रम्। अ॒स्मे इति॑ ॥ १.११८.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:118» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राज्य के सहाय से स्त्री-पुरुष के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) सभासेनाधीशो ! तुम दोनों (त्रिवन्धुरेण) जो तीन प्रकार के बन्धनों से युक्त (त्रिचक्रेण) जिसमें कलों के तीन चक्कर लगे (त्रिवृता) और तीन ओढ़ने के वस्त्रों से युक्त जो (सुवृता) अच्छे-अच्छे मनुष्य शृङ्गारों के साथ वर्त्तमान (रथेन) रथ है उससे (अर्वाक्) भूमि के नीचे (आ, यातम्) आओ, (नः) हम लोगों की (गाः) पृथिवी में जो भूमि हैं उनका (पिन्वतम्) सेवन करो, (अर्वतः) राज्य पाये हुए मनुष्य वा घोड़ों को (जिन्वतम्) जी आओ सुख देओ, (अस्मे) हम लोगों को और हम लोगों के (वीरम्) शूरवीर पुरुष को (वर्द्धयतम्) बढ़ाओ वृद्धि देओ ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुष अच्छी सामग्री और उत्तम शास्त्रवेत्ता विद्वानों का सहाय ले सब स्त्री-पुरुषों को समृद्धि और सिद्धियुक्त करके प्रशंसित हों ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्यसहायेन स्त्रीपुरुषविषयमाह ।

अन्वय:

हे अश्विना युवां त्रिवन्धुरेण त्रिचक्रेण त्रिवृता सुवृता रथेनार्वागायातम्। नो गाः पिन्वतमर्वतो जिन्वतमस्मेऽस्मान्नस्माकं वीरं च वर्धयतम् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिवन्धुरेण) त्रिविधबन्धनयुक्तेन (त्रिवृता) त्र्यावरणेन (रथेन) (त्रिचक्रेण) त्रीणि कलानां चक्राणि यस्मिन् (सुवृता) शोभनैर्मनुष्यैः शृङ्गारैर्वा सह वर्त्तमानेन (आ) (यातम्) प्राप्नुतम् (अर्वाक्) भूमेरधोभागम् (पिन्वतम्) सेवेथाम् (गाः) भूगोलस्था भूमीः (जिन्वतम्) सुखयतम् (अर्वतः) प्राप्तराज्यान् जनानश्वान्वा (नः) अस्माकम् (वर्धयतम्) (अश्विना) (वीरम्) शूरपुरुषम् (अस्मे) अस्मान् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषाः सुसंभारा आप्तसहाया भूत्वा सर्वान् स्त्रीपुरुषान् समृद्धियुक्तान् कृत्वा प्रशंसिताः स्युः ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी चांगले साहित्य व उत्तम शास्त्रवेत्ते, विद्वान यांच्या साह्याने सर्व स्त्री-पुरुषांना समृद्ध व प्रवीण करून प्रशंसित व्हावे. ॥ २ ॥