मा न॑स्तो॒के तन॑ये॒ मा न॑ आ॒यौ मा नो॒ गोषु॒ मा नो॒ अश्वे॑षु रीरिषः। वी॒रान्मा नो॑ रुद्र भामि॒तो व॑धीर्ह॒विष्म॑न्त॒: सद॒मित्त्वा॑ हवामहे ॥
mā nas toke tanaye mā na āyau mā no goṣu mā no aśveṣu rīriṣaḥ | vīrān mā no rudra bhāmito vadhīr haviṣmantaḥ sadam it tvā havāmahe ||
मा। नः॒। तो॒के। तन॑ये। मा। नः॒। आ॒यौ। मा। नः॒। गोषु॑। मा। नः॒। अश्वे॑षु। रि॒रि॒षः॒। वी॒रान्। मा। नः॒। रु॒द्र॒। भा॒मि॒तः। व॒धीः॒। ह॒विष्म॑न्तः। सद॑म्। इत्। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ १.११४.८
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजजन कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः राजजनाः कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते ।
हे रुद्र हविष्मन्तो वयं यतस्सदं त्वामिदेव हवामहे तस्माद्भामितस्त्वं नस्तोके तनये मा रीरिषो न आयौ मा रीरिषः, नो गोषु मा रीरिषः, नोऽश्वेषु मा रीरिषः, नो वीरान् मा वधीः ॥ ८ ॥