मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ अर्भ॒कं मा न॒ उक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ उक्षि॒तम्। मा नो॑ बधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा न॑: प्रि॒यास्त॒न्वो॑ रुद्र रीरिषः ॥
mā no mahāntam uta mā no arbhakam mā na ukṣantam uta mā na ukṣitam | mā no vadhīḥ pitaram mota mātaram mā naḥ priyās tanvo rudra rīriṣaḥ ||
मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। ब॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः॑। रु॒द्र॒। रि॒रि॒षः॒ ॥ १.११४.७
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब न्यायाधीश कैसे वर्त्ते, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ न्यायाधीशः कथं वर्त्तेतेत्युपदिश्यते ।
हे रुद्रं त्वं नोऽस्माकं महान्तं मा बधीरुतापि नोऽर्भकं मा बधीः। न उक्षन्तं मा बधीरुतापि न उक्षितं मा बधीः। नः पितरं मा बधीः उत मातरं मा बधीः। नः प्रियास्तन्वस्तनू मां बधीरन्यायकारिणो दुष्टांश्च रीरिषः ॥ ७ ॥