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मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ अर्भ॒कं मा न॒ उक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ उक्षि॒तम्। मा नो॑ बधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा न॑: प्रि॒यास्त॒न्वो॑ रुद्र रीरिषः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no mahāntam uta mā no arbhakam mā na ukṣantam uta mā na ukṣitam | mā no vadhīḥ pitaram mota mātaram mā naḥ priyās tanvo rudra rīriṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। ब॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः॑। रु॒द्र॒। रि॒रि॒षः॒ ॥ १.११४.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:114» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब न्यायाधीश कैसे वर्त्ते, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्र) न्यायाधीश दुष्टों को रुलानेहारे सभापति (नः) हम लोगों में से (महान्तम्) बुड्ढे वा पढ़े-लिखे मनुष्य को (मा) मत (बधीः) मारो (उत) और (नः) हमारे (अर्भकम्) बालक को (मा) मत मारो (नः) हमारे (उक्षन्तम्) स्त्रीसङ्ग करने में समर्थ युवावस्था से परिपूर्ण मनुष्य को (मा) मत मारो (उत) और (नः) हमारे (उक्षितम्) वीर्यसेचन से स्थित हुए गर्भ को (मा) मत मारो (नः) हम लोगों के (पितरम्) पालने और उत्पन्न करनेहारे पिता वा उपदेश करनेवाले को (मा) मत मारो (उत) और (मातरम्) मान सन्मान और उत्पन्न करनेहारी माता वा विदुषी स्त्री को (मा) मत मारो (नः) हम लोगों की (प्रियाः) स्त्री आदि के पियारे (तन्वः) शरीरों को (मा) मत मारो और अन्यायकारी दुष्टों को (रीरिषः) मारो ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर पक्षपात को छोड़ के धार्मिक सज्जनों को उत्तम कर्मों के फल देने से सुख देता और पापियों को पाप का फल देने से पीड़ा देता है, वैसे ही तुम लोग भी अच्छा यत्न करो ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ न्यायाधीशः कथं वर्त्तेतेत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे रुद्रं त्वं नोऽस्माकं महान्तं मा बधीरुतापि नोऽर्भकं मा बधीः। न उक्षन्तं मा बधीरुतापि न उक्षितं मा बधीः। नः पितरं मा बधीः उत मातरं मा बधीः। नः प्रियास्तन्वस्तनू मां बधीरन्यायकारिणो दुष्टांश्च रीरिषः ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (महान्तम्) वयोविद्यावृद्धं जनम् (उत) अपि (मा) (नः) (अर्भकम्) बाल्यावस्थापन्नम् (मा) (नः) (उक्षन्तम्) वीर्यसेचनसमर्थं युवानम् (उत) (मा) (नः) (उक्षितम्) वीर्यसेचनस्थितं गर्भम् (मा) (नः) (बधीः) हिन्धि (पितरम्) पालकं जनकं विद्वांसं वा (मा) (उत) (मातरम्) मानसन्मानकर्त्री जननीं विदुषीं वा (मा) (नः) (प्रियाः) अभीप्सिताः (तन्वः) तनूः शरीराणि (रुद्र) न्यायाधीश दुष्टरोदयितः (रीरिषः) जहि। अत्र तुजादित्वाद्दीर्घः ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा जगदीश्वरः पक्षपातं विहाय धार्मिकानुत्तमकर्मफलदानेन सुखयति पापिनश्च पापफलदानेन पीडयति तथैव यूयं प्रयतध्वम् ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसा ईश्वर भेदभाव न करता धार्मिक लोकांना उत्तम कर्मांचे फळ देऊन सुखी करतो व पापी लोकांना पापाचे फळ देऊन पीडित करतो. तसा तुम्हीही चांगला प्रयत्न करा. ॥ ७ ॥