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ई॒युष्टे ये पूर्व॑तरा॒मप॑श्यन्व्यु॒च्छन्ती॑मु॒षसं॒ मर्त्या॑सः। अ॒स्माभि॑रू॒ नु प्र॑ति॒चक्ष्या॑भू॒दो ते य॑न्ति॒ ये अ॑प॒रीषु॒ पश्या॑न् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īyuṣ ṭe ye pūrvatarām apaśyan vyucchantīm uṣasam martyāsaḥ | asmābhir ū nu praticakṣyābhūd o te yanti ye aparīṣu paśyān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒युः। ते। ये। पूर्व॑ऽतराम्। अप॑श्यन्। वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑म्। उ॒षस॑म्। मर्त्या॑सः। अ॒स्माभिः॑। ऊँ॒ इति॑। नु। प्र॒ति॒ऽचक्ष्या॑। अ॒भू॒त्। ओ इति॑। ते। य॒न्ति॒। ये। अ॒प॒रीषु॑। पश्या॑न् ॥ १.११३.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रभात विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (मर्त्यासः) मनुष्य लोग (व्युच्छन्तीम्) जगाती हुई (पूर्वतराम्) अति प्राचीन (उषसम्) प्रभात वेला को (ईयुः) प्राप्त होवें (ते) वे (अस्माभिः) हम लोगों के साथ सुख को (अपश्यन्) देखते हैं, जो प्रभात वेला हमारे साथ (प्रतिचक्ष्या) प्रत्यक्ष से देखने योग्य (अभूत्) होती है वह (नु) शीघ्र सुख देनेवाली होती है। (उ) और (ये) जो (अपरीषु) आनेवाली उषाओं में व्यतीत हुई उषा को (पश्यान्) देखें (ते) वे (ओ) ही सुख को (यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उषा के पहिले शयन से उठ आवश्यक कर्म करके परमेश्वर का ध्यान करते हैं, वे बुद्धिमान् और धार्मिक होते हैं। जो स्त्री-पुरुष परमेश्वर का ध्यान करके प्रीति से आपस में बोलते-चालते हैं, वे अनेकविध सुखों को प्राप्त होते हैं ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रभातविषयं प्राह ।

अन्वय:

ये मर्त्यासो व्युच्छन्ती पूर्वतरामुषसमीयुस्तेऽस्माभिः सह सुखमपश्यन् योषा अस्माभिः प्रतिचक्ष्याभूद् भवति सा नु सुखप्रदा भवति। उ ये अपरीषु पूर्वतरां पश्यान् त ओ एव सुखं यन्ति प्राप्नुवन्ति ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईयुः) प्राप्नुयुः (ते) (ये) (पूर्वतराम्) अतिशयेन पूर्वाम् (अपश्यन्) पश्येयुः (व्युच्छन्तीम्) निद्रां विवासयन्तीम् (उषसम्) प्रभातसमयम् (मर्त्यासः) मनुष्याः (अस्माभिः) (उ) वितर्के (नु) शीघ्रम् (प्रतिचक्ष्या) प्रत्यक्षेण द्रष्टुं योग्या (अभूत्) भवति (ओ) अवधारणे (ते) (यन्ति) (ये) (अपरीषु) आगामिनीषूषस्सु (पश्यान्) पश्येयुः ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या उषसः प्राक् शयनादुत्थायावश्यकं कृत्वा परमेश्वरं ध्यायन्ति ते धीमन्तो धार्मिको जायन्ते। ये स्त्री पुरुषा जगदीश्वरं ध्यात्वा प्रीत्या संवदते तेऽनेकविधानि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे उषेचे आगमन होण्यापूर्वी जागे होऊन आवश्यक कार्य करतात व नंतर परमेश्वराचे ध्यान करतात ती बुद्धिमान व धार्मिक असतात. जे स्त्री-पुरुष परमेश्वराचे ध्यान करून प्रेमाने आपापसात बोलतात. त्यांना अनेक प्रकारचे सुख प्राप्त होते. ॥ ११ ॥