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इ॒दं श्रेष्ठं॒ ज्योति॑षां॒ ज्योति॒रागा॑च्चि॒त्रः प्र॑के॒तो अ॑जनिष्ट॒ विभ्वा॑। यथा॒ प्रसू॑ता सवि॒तुः स॒वायँ॑ ए॒वा रात्र्यु॒षसे॒ योनि॑मारैक् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ śreṣṭhaṁ jyotiṣāṁ jyotir āgāc citraḥ praketo ajaniṣṭa vibhvā | yathā prasūtā savituḥ savāyam̐ evā rātry uṣase yonim āraik ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। श्रेष्ठ॑म्। ज्योति॑षाम्। ज्योतिः॑। आ। अ॒गा॒त्। चि॒त्रः। प्र॒ऽके॒तः। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। विऽभ्वा॑। यथा॑। प्रऽसू॑ता। स॒वि॒तुः। स॒वाय॑। ए॒व। रात्री॑। उ॒षसे॑। योनि॑म्। अ॒रै॒क् ॥ १.११३.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब आठवें अध्याय का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (प्रसूता) उत्पन्न हुई (रात्री) निशा (सवितुः) सूर्य्य के सम्बन्ध से (सवाय) ऐश्वर्य्य के हेतु (उषसे) प्रातःकाल के लिये (योनिम्) घर-घर को (आरैक्) अलग-अलग प्राप्त होती है, वैसे ही (चित्रः) अद्भुत गुण, कर्म स्वभाववाला (प्रकेतः) बुद्धिमान् विद्वान् जिस (इदम्) इस (ज्योतिषाम्) प्रकाशकों के बीच (श्रेष्ठम्) अतीवोत्तम (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप ब्रह्म को (आ, अगात्) प्राप्त होता है, (एव) उसी (विभ्वा) व्यापक परमात्मा के साथ सुखैश्वर्य के लिये (अजनिष्ट) उत्पन्न होता और दुःखस्थान से पृथक् होता है ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्योदय को प्राप्त होकर अन्धकार नष्ट हो जाता है, वैसे ही ब्रह्मज्ञान को प्राप्त होकर दुःख दूर हो जाता है। इससे सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर को जानने के लिये प्रयत्न किया करें ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्रादिममन्त्रे विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

यथा प्रसूता रात्री सवितुः सवायोषसे योनिमारैक् तथैव चित्रः प्रकेतो विद्वान् यदिदं ज्योतिषां श्रेष्ठं ज्योतिर्ब्रह्मागात्तेनैव विभ्वा सह सुखैश्वर्य्यायाजनिष्ट दुःखस्थानादारैक् ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) प्रत्यक्षं वक्ष्यमाणम् (श्रेष्ठम्) प्रशस्तम् (ज्योतिषाम्) प्रकाशानाम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (आ) समन्तात् (अगात्) प्राप्नोति (चित्रः) अद्भुतः (प्रकेतः) प्रकृष्टप्रज्ञः (अजनिष्ट) जायते (विभ्वा) विभुना परमेश्वरेण सह। अत्र तृतीयैकवचनस्थाने आकारादेशः। (यथा) (प्रसूता) उत्पन्ना (सवितुः) सूर्य्यस्य सम्बन्धेन (सवाय) ऐश्वर्याय (एव) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (रात्री) (उषसे) प्रातःकालाय (योनिम्) (गृहम्) (आरैक्) व्यतिरिणक्ति ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्योदयं प्राप्यान्धकारो विनश्यति तथैव ब्रह्मज्ञानमवाप्य दुःखं विनश्यति। अतः सर्वैर्ब्रह्मज्ञानाय यतितव्यम् ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात रात्र व प्रभात यांच्या वेळेच्या गुणांचे वर्णन व त्यांच्या दृष्टांताने स्त्री- पुरुषांच्या कर्तव्य कर्माचा उपदेश केलेला आहे. यासाठी या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तात सांगितलेल्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्योदय होताच अंधकार नष्ट होतो. तसेच ब्रह्मज्ञान प्राप्त झाल्यावर दुःख दूर होते. यामुळे सर्व माणसांनी परमेश्वराला जाणण्याचा प्रयत्न करावा. ॥ १ ॥