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अप्न॑स्वतीमश्विना॒ वाच॑म॒स्मे कृ॒तं नो॑ दस्रा वृषणा मनी॒षाम्। अ॒द्यू॒त्येऽव॑से॒ नि ह्व॑ये वां वृ॒धे च॑ नो भवतं॒ वाज॑सातौ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apnasvatīm aśvinā vācam asme kṛtaṁ no dasrā vṛṣaṇā manīṣām | adyūtye vase ni hvaye vāṁ vṛdhe ca no bhavataṁ vājasātau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप्न॑स्वतीम्। अ॒श्वि॒ना॒। वाच॑म्। अ॒स्मे इति॑। कृ॒तम्। नः॒। द॒स्रा॒। वृ॒ष॒णा॒। म॒नी॒षाम्। अ॒द्यू॒त्ये॑। अव॑से। नि। ह्व॒ये॒। वा॒म्। वृ॒धे। च॒। नः॒। भ॒व॒त॒म्। वाज॑ऽसातौ ॥ १.११२.२४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:112» मन्त्र:24 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:37» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:24


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अध्यापक और उपदेशकों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दस्रा) सबके दुःखनिवारक (वृषणा) सुखको वर्षानेहारे (अश्विना) अध्यापक उपदेशक लोगो ! तुम दोनों (अस्मे) हममें (अप्नस्वतीम्) बहुत पुत्र-पौत्र करनेहारी (वाचम्) वाणी को (कृतम्) कीजिये (अद्यूत्ये) छलादि दोषरहित व्यवहार में (नः) हमारी (अवसे) रक्षादि के लिये (मनीषाम्) योग विज्ञानवाली बुद्धि को कीजिये (वाजसातौ) युद्धादि व्यवहार में (नः) हमारी (च) और अन्य लोगों की (वृधे) वृद्धि के लिये निरन्तर (भवतम्) उद्यत हूजिये, इसी के लिये (वाम्) तुम दोनों को मैं (निह्वये) नित्य बुलाता हूँ ॥ २४ ॥
भावार्थभाषाः - कोई भी पुरुष आप्त विद्वानों के समागम के विना पूर्ण विद्यायुक्त वाणी और बुद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता, न इन दोनों के विना शत्रुओं का जय और सब ओर से बढ़ती को प्राप्त हो सकता है ॥ २४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अध्यापकोपदेशकाभ्यां किं कर्त्तव्यमित्याह ।

अन्वय:

हे दस्रा वृषणाऽश्विनाध्यापकोपदेशकौ युवामस्मेऽस्मभ्यमप्नस्वतीं वाचं कृतम्। अद्यूत्येनोऽवसे मनीषां कृतम्। वाजसातौ नोऽस्माकमन्येषां च वृधे सततं भवतम्। एतदर्थं वा युवामहं निह्वये ॥ २४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्नस्वतीम्) प्रशस्तापत्ययुक्ताम् (अश्विना) आप्तावध्यापकोपदेशकौ (वाचम्) वेदादिशास्त्रसंस्कृतां वाणीम् (अस्मे) अस्मासु (कृतम्) कुरुतम्। अत्र विकरणस्य लुक्। (नः) (अस्मभ्यम्) (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (वृषणा) सुखाभिवर्षकौ (मनीषाम्) योगविज्ञानवतीम्बुद्धिम् (अद्यूत्ये) द्यूते भवो व्यवहारो द्यूत्यश्छलादिदूषितस्तद्भिन्ने (अवसे) रक्षणाद्याय (नि) नितराम् (ह्वये) आह्वानं कुर्वे (वाम्) युवाम् (वृधे) सर्वतो वर्धनाय (च) अन्येषां समुच्चये (नः) अस्माकम् (भवतम्) (वाजसातौ) युद्धादिव्यवहारे ॥ २४ ॥
भावार्थभाषाः - न खलु कश्चिदप्याप्तयोर्विदुषोः समागमेन विना पूर्णविद्यायुक्तां वाचं प्रज्ञां च प्राप्तुमर्हति नह्येते अन्तरा शत्रुजयमभितो वृद्धिं च ॥ २४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणताही माणूस आप्त विद्वानांच्या संगतीशिवाय पूर्ण विद्यायुक्त वाणी व बुद्धी प्राप्त करू शकत नाही. या दोन्हीशिवाय शत्रूंवर विजय व सर्व प्रकारे वाढ होऊ शकत नाही. ॥ २४ ॥