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यदि॑न्द्राग्नी दि॒वि ष्ठो यत्पृ॑थि॒व्यां यत्पर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु। अत॒: परि॑ वृषणा॒वा हि या॒तमथा॒ सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad indrāgnī divi ṣṭho yat pṛthivyāṁ yat parvateṣv oṣadhīṣv apsu | ataḥ pari vṛṣaṇāv ā hi yātam athā somasya pibataṁ sutasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। दि॒वि। स्थः। यत्। पृ॒थि॒व्याम्। यत्। पर्व॑तेषु। ओष॑धीषु। अ॒प्ऽसु। अतः॑। परि॑। वृ॒ष॒णौ॒। आ। हि। या॒तम्। अथ॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:108» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब भौतिक इन्द्र और अग्नि कहाँ-कहाँ रहते हैं, यह उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जिस कारण (इन्द्राग्नी) पवन और बिजुली (दिवि) प्रकाशमान आकाश में (यत्) जिस कारण (पृथिव्याम्) पृथिवी में (यत्) वा जिस कारण (पर्वतेषु) पर्वतों (अप्सु) जलों में और (ओषधीषु) ओषधियों में (स्थः) वर्त्तमान हैं (अतः) इस कारण (परि, वृषणौ) सब प्रकार से सुख की वर्षा करनेवाले वे (हि) निश्चय से (आ, यातम्) प्राप्त होते (अथ) इसके अनन्तर (सुतस्य) निकाले हुए (सोमस्य) जगत् के पदार्थों के रस को (पिबतम्) पीते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - जो धनञ्जय पवन और कारणरूप अग्नि सब पदार्थों में विद्यमान हैं, वे जैसे के वैसे जाने और क्रियाओं में जोड़े हुए बहुत कामों को सिद्ध करते हैं ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ भौतिकाविन्द्राग्नी क्व क्व वर्त्तेते इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

यदिन्द्राग्नी दिवि यत् पृथिव्यां यत् पर्वतेष्वप्स्वोषधीषु स्थो वर्त्तेते। अतः परिवृषणौ तौ ह्यायातमागच्छतोऽथ सुतस्य सोमस्य रसं पिबतम् ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यतः (इन्द्राग्नी) पवनविद्युतौ (दिवि) प्रकाशमान आकाशे सूर्य्यलोके वा (स्थः) वर्त्तेते (यत्) यतः (पृथिव्याम्) भूमौ (यत्) यतः (पर्वतेषु) (अप्सु) (अतः०) इति पूर्ववत् ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - यौ धनञ्जयवायुकारणाख्यावग्नी सर्वपदार्थस्थौ विद्येते तौ यथावद्विदितौ संप्रयोजितौ च बहूनि कार्य्याणि साधयतः ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे धनंजय वायू व कारणरूपी अग्नी सर्व पदार्थांत विद्यमान आहेत ते जसे आहेत तसे जाणावे, ते क्रियेत संप्रयोजन करून पुष्कळ कामात सिद्ध करता येतात. ॥ ११ ॥