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स॒त्तो होता॑ मनु॒ष्वदा दे॒वाँ अच्छा॑ वि॒दुष्ट॑रः। अ॒ग्निर्ह॒व्या सु॑षूदति दे॒वो दे॒वेषु॒ मेधि॑रो वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satto hotā manuṣvad ā devām̐ acchā viduṣṭaraḥ | agnir havyā suṣūdati devo deveṣu medhiro vittam me asya rodasī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्तः। होता॑। म॒नु॒ष्वत्। आ। दे॒वान्। अच्छ॑। वि॒दुःऽत॑रः। अ॒ग्निः। ह॒व्या। सु॒सू॒द॒ति॒। दे॒वः। दे॒वेषु॑। मेधि॑रः। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.१४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:105» मन्त्र:14 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् वहाँ क्या करे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (सत्तः) विज्ञानवान् दुःख हरनेवाला (देवान्) विद्वान् वा दिव्य-दिव्य क्रियायोगों का (होता) ग्रहरण करनेवाला (विदुष्टरः) अत्यन्त ज्ञानी (अग्निः) श्रेष्ठ विद्या का जानने वा समझानेवाला (मेधिरः) बुद्धिमान् (देवेषु) विद्वानों में (देवः) प्रशंसनीय विद्वान् मनुष्य (मनुष्वत्) जैसे उत्तम मनुष्य श्रेष्ठ कर्मों का अनुष्ठान कर पापों को छोड़ सुखी होते हैं, वैसे (हव्या) देने-लेने योग्य पदार्थों को (अच्छ, आ, सुषूदति) अच्छी रीति से अत्यन्त देता है, उस उत्तम विद्वान् से विद्या और शिक्षा को ग्रहण करना चाहिये ॥ १४ ॥
भावार्थभाषाः - ऐसा भाग्यहीन कौन जन होवे, जो विद्वानों से विद्या और शिक्षा न लेके इनका विरोधी हो ॥ १४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स तत्र किं कुर्यादित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे मनुष्या यः सत्तो देवान् होता विदुष्टरोऽग्निर्मेधिरो देवेषु देवो मनुष्वद्धव्याच्छ सुषूदति तस्मात्सर्वैर्विद्याशिक्षे ग्राह्ये। अन्यत्पूर्ववत् ॥ १४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्तः) विज्ञानवान् दुःखहन्ता (होता) ग्रहीता (मनुष्वत्) यथोत्तमा मनुष्या श्रेष्ठानि कर्माण्यनुष्ठाय पापानि त्यक्त्वा सुखिनो भवन्ति तथा (आ) (देवान्) विदुषो दिव्यक्रियायोगान् वा (अच्छ) सम्यग्रीत्या। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (विदुष्टरः) अतिशयेन वेत्ता (अग्निः) सद्विद्याया वेत्ता विज्ञापयिता वा (हव्या) दातुं ग्रहीतुं योग्यानि (सुषूदति) ददाति (देवः) प्रशस्तो विद्वान्मनुष्यः (देवेषु) विद्वत्सु (मेधिरः) मेधावी। अत्र मेधारथाभ्यामिरन्निरचौ। अ० ५। २। १०९। इति वार्त्तिकेन मत्वर्थीय इरन् प्रत्ययः। (वित्तं, मे०) इति पूर्ववत् ॥ १४ ॥  
भावार्थभाषाः - ईदृशो भाग्यहीनः को मनुष्यः स्याद्यो विदुषां सकाशाद् विद्याशिक्षे अगृहीत्वैषां विरोधी भवेत् ॥ १४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - असा दुर्दैवी माणूस कोण असेल जो विद्वानांच्या साह्याने विद्या व शिक्षण न घेता त्यांचा विरोध करील? ॥ १४ ॥