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स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सूपाय॒नो भ॑व। सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa naḥ piteva sūnave gne sūpāyano bhava | sacasvā naḥ svastaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। पि॒ताऽइ॑व। सू॒नवे॑। अग्ने॑। सु॒ऽउ॒पा॒य॒नः। भ॒व॒। सच॑स्व। नः॒। स्व॒स्तये॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:1» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

वह परमेश्वर किस के समान किनकी रक्षा करता है, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सः) उक्त गुणयुक्त (अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (पितेव) जैसे पिता (सूनवे) अपने पुत्र के लिये उत्तम ज्ञान का देनेवाला होता है, वैसे ही आप (नः) हम लोगों के लिये (सूपायनः) शोभन ज्ञान, जो कि सब सुखों का साधक और उत्तम पदार्थों का प्राप्त करनेवाला है, उसके देनेवाले (भव) हूजिये तथा (नः) हम लोगों को (स्वस्तये) सब सुख के लिये (सचस्व) संयुक्त कीजिये॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को उत्तम प्रयत्न और ईश्वर की प्रार्थना इस प्रकार से करनी चाहिये कि-हे भगवन् ! जैसे पिता अपने पुत्रों को अच्छी प्रकार पालन करके और उत्तम-उत्तम शिक्षा देकर उनको शुभ गुण और श्रेष्ठ कर्म करने योग्य बना देता है, वैसे ही आप हम लोगों को शुभ गुण और शुभ कर्मों में युक्त सदैव कीजिये॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

स कान् क इव रक्षतीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे अग्ने ! स त्वं सूनवे पितेव नोऽस्मभ्यं सूपायनो भव। एवं नोऽस्मान् स्वस्तये सचस्व॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) जगदीश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (पितेव) जनकवत् (सूनवे) स्वसन्तानाय (अग्ने) ज्ञानस्वरूप ! (सूपायनः) सुष्ठु उपगतमयनं ज्ञानं सुखसाधनं पदार्थप्रापणं यस्मात्सः (भव, सचस्व) समवेतान् कुरु। अन्येषामपि दृश्यते। (अष्टा०६.३.१३७) इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (स्वस्तये) सुखाय कल्याणाय च॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। सर्वैरेवं प्रयत्नः कर्तव्य ईश्वरः प्रार्थनीयश्च-हे भगवन् ! भवानस्मान् रक्षयित्वा शुभेषु गुणकर्मसु सदैव नियोजयतु। यथा पिता स्वसन्तानान्सम्यक् पालयित्वा सुशिक्ष्य शुभगुणकर्म्मयुक्तान् श्रेष्ठकर्मकर्तंॄश्च सम्पादयति, तथैव भवानपि स्वकृपयाऽस्मान्निष्पादयत्विति॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी कर्तव्य पालन करताना उत्तम प्रयत्न केले पाहिजेत व या प्रकारे ईश्वराची प्रार्थना केली पाहिजे - हे भगवान! जसा पिता आपल्या पुत्रांचे चांगल्या प्रकारे पालन करून त्यांना उत्तमोत्तम शिक्षण देऊन शुभ गुण व श्रेष्ठ कर्म करण्यायोग्य बनवितो, तसेच तू आम्हाला शुभ गुणकर्मांनी सदैव युक्त कर. ॥ ९ ॥
टिप्पणी: सायणाचार्य इत्यादी व युरोपियन डॉक्टर विल्सन इत्यादींनी या सूक्ताची व्याख्या विपरीत केलेली आहे. तेव्हा हे माझे भाष्य व त्यांची व्याख्या पाहता सर्वांना स्पष्ट कळून येईल. ॥