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अ॒भि वस्त्रा॑ सुवस॒नान्य॑र्षा॒भि धे॒नूः सु॒दुघा॑: पू॒यमा॑नः । अ॒भि च॒न्द्रा भर्त॑वे नो॒ हिर॑ण्या॒भ्यश्वा॑न्र॒थिनो॑ देव सोम ॥

English Transliteration

abhi vastrā suvasanāny arṣābhi dhenūḥ sudughāḥ pūyamānaḥ | abhi candrā bhartave no hiraṇyābhy aśvān rathino deva soma ||

Pad Path

अ॒भि । वस्त्रा॑ । सु॒ऽव॒स॒नानि॑ । अ॒र्ष॒ । अ॒भि । धे॒नूः । सु॒ऽदुघाः॑ । पू॒यमा॑नः । अ॒भि । च॒न्द्रा । भर्त॑वे । नः॒ । हिर॑ण्या । अ॒भि । अश्वा॑न् । र॒थिनः॑ । दे॒व॒ । सो॒म॒ ॥ ९.९७.५०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:97» Mantra:50 | Ashtak:7» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:6» Mantra:50


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे सर्वोत्पादक (देव) दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (नः, भर्तवे) हमारी तृप्ति के लिये (वस्त्रा, सुवसनानि) शोभन वस्त्र (अभ्यर्ष) दें (पूयमानः) सबको पवित्र हुए आप (सुदुघाः) सुन्दर अर्थों से परिपूर्ण (धेनूः) वाणियें (अभ्यर्ष) हमको दें, (चन्द्रा, हिरण्या) आह्लादक धन आप (नः) हमको (अभ्यर्ष) दें, (रथिनः) वेगवाले (अश्वान्) घोड़े (नः) हमको (अभ्यर्ष) दें ॥५०॥
Connotation: - इस मन्त्र में पुनरपि ऐश्वर्य प्राप्ति की प्रार्थना है कि हे परमात्मन् ! आप हमको ऐश्वर्यशाली बनने के लिये ऐश्वर्य्य प्रदान करें। पुनः-पुनः ऐश्वर्य की प्रार्थना करना अर्थपुनरुक्ति नहीं, किन्तु अभ्यास अर्थात् दृढ़ता के लिये उपदेश हैं, जैसा कि “आत्मा वारे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः” इत्यादिकों में बार-बार चित्तवृत्ति का लगाना परमात्मा में कथन किया गया है, इसी प्रकार यहाँ भी दृढ़ता के लिये उसी अर्थ का पुनः-पुनः कथन है। जो अज्ञानियों को वेद में पुनरुक्ति दोष प्रतीत होता है, ऐसा नहीं है। वेद में पुनरुक्ति दोष नहीं, यह केवल अज्ञानियों की भ्रान्ति है ॥५०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम, देव) हे दिव्यस्वरूप भगवन् ! (नः, भर्तवे) अस्मत्तृप्तये (वस्त्रा, सुवसनानि) स्वाच्छाद्यवस्त्राणि (अभि, अर्ष) प्रयच्छतु (पूयमानः) सर्वान् पावयन् (सुदुघाः, धेनूः) स्वर्था वाचः (अभि, अर्ष) ददातु (चन्द्रा, हिरण्या) आह्लादकधनं च (अभि, अर्ष) ददातु (रथिनः) वेगवतः (अश्वान्) वाहान् (अभि, अर्ष) मह्यं ददातु ॥५०॥