Word-Meaning: - (होता) उक्त परमात्मा का उपासक (पशुमन्ति सद्मेव) ज्ञानागार के सागर (परियाति) उसको प्राप्त होता है। (राजा न) जैसे कि राजा (सत्यः) सत्य का अनुयायी (समितिः) सभा को (इयानः) प्राप्त होता हुआ प्रसन्न होता है, इसी प्रकार विद्वान् ज्ञानागार को प्राप्त होकर प्रसन्न होता है। (सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (पुनानः) सबको पवित्र करता हुआ (कलशान्) अन्तःकरणों को (अयासीत्) प्राप्त होता है, (न) जैसे कि (महिषो मृगः) बलवाला (वनेषु) वनों में प्राप्त होता है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में राजधर्म का वर्णन है कि जिस प्रकार राजा लोग सत्यासत्य की निर्णय करनेवाली सभा को प्राप्त होते हैं, इसी प्रकार विद्वान् लोग भी न्याय के निर्णय करनेवाली सभाओं को प्राप्त होकर संसार का उद्धार करते हैं ॥ तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार राजा लोग अपने न्यायरूपी सत्य से संसार का उद्धार करते हैं, इसी प्रकार विद्वान् लोग अपने सदुपदेशों द्वारा संसार का उद्धार करते हैं ॥६॥ यह ९२ वाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥