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वि॒प॒श्चिते॒ पव॑मानाय गायत म॒ही न धारात्यन्धो॑ अर्षति । अहि॒र्न जू॒र्णामति॑ सर्पति॒ त्वच॒मत्यो॒ न क्रीळ॑न्नसर॒द्वृषा॒ हरि॑: ॥

English Transliteration

vipaścite pavamānāya gāyata mahī na dhārāty andho arṣati | ahir na jūrṇām ati sarpati tvacam atyo na krīḻann asarad vṛṣā hariḥ ||

Pad Path

वि॒पः॒ऽचिते॑ । पव॑मानाय । गा॒य॒त॒ । म॒ही । न । धा॒रा॒ति॒ । अन्धः॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । अहिः॑ । न । जू॒णाम् । अति॑ । स॒र्प॒ति॒ । त्वच॑म् । अत्यः॑ । न । क्रीळ॑न् । अ॒स॒र॒त् । वृषा॑ । हरिः॑ ॥ ९.८६.४४

Rigveda » Mandal:9» Sukta:86» Mantra:44 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:44


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे ज्ञानीपुरुषो ! (विपश्चिते) सर्वज्ञ परमात्मा के (पवमानाय) जो सबको पवित्र करनेवाला है, उसके लिये आप (गायत) गान करें, जो (धारा न) धारा के समान (मही) बड़े (अत्यन्धः) ऐश्वर्य को (अर्षति) देनेवाला है। जिसको जानकर पुरुष (अहिः) साँप की (जूर्णा त्वचं न) जीर्ण त्वचा के समान (अतिसर्पति) त्यागकर गमन करता है (अत्यो न) विद्युत् के समान (क्रीळन्) क्रीड़ा करता हुआ (असरत्) सर्वत्र गतिशील होता है और (वृषा) सब कामनाओं की वृष्टि करता है (हरिः) तथा सब विपत्तियों को हर लेता है ॥४४॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा की उपासना का कथन किया गया है कि हे उपासक लोगों ! तुम उस सर्वज्ञ पुरुष की उपासना करो, जो सर्वोपरि विज्ञानी ओर पतितोद्धारक है। इस मन्त्र में “विपश्चिते” शब्द परमात्मा के लिये आया है और पहिले-पहिल “विपश्चित्” शब्द मेधावी के लिये वेद में ही आया है, इसी का अनुकरण आधुनिक कोषों में भी किया गया है ॥४४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे ज्ञानिपुरुषाः ! (विपश्चिते) सर्वज्ञपरमात्मने (पवमानाय) यः सर्वपावकोऽस्ति। तस्मै त्वं (गायत) गानं कुरुत यः (धारा, न) धारेव (मही) महत् (अति, अन्धः) ऐश्वर्यं (अर्षति) ददाति। यदभिज्ञाय पुरुषः (अहिः) सर्पस्य (जूर्णां, त्वचं, न) जीर्णत्वच इव (अति, सर्पति) परित्यज्य गच्छति। (अत्यः, न) विद्युदिव (क्रीळन्) क्रीडन् (असरत्) सर्वत्र गतिशीलो भवति। अपि च (वृषा) सर्वान् कामान् वर्षति (हरिः) तथा सर्वा विपत्तीर्हरति ॥४४॥