Go To Mantra

पव॑मान॒ मह्यर्णो॒ वि धा॑वसि॒ सूरो॒ न चि॒त्रो अव्य॑यानि॒ पव्य॑या । गभ॑स्तिपूतो॒ नृभि॒रद्रि॑भिः सु॒तो म॒हे वाजा॑य॒ धन्या॑य धन्वसि ॥

English Transliteration

pavamāna mahy arṇo vi dhāvasi sūro na citro avyayāni pavyayā | gabhastipūto nṛbhir adribhiḥ suto mahe vājāya dhanyāya dhanvasi ||

Pad Path

पव॑मान । महि॑ । अर्णः॑ । वि । धा॒व॒सि॒ । सूरः॑ । न । चि॒त्रः । अव्य॑यानि । पव्य॑या । गभ॑स्तिऽपूतः । नृऽभिः॑ । अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । म॒हे । वाजा॑य । धन्या॑य । ध॒न्व॒सि॒ ॥ ९.८६.३४

Rigveda » Mandal:9» Sukta:86» Mantra:34 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:34


Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (मह्यर्णः) गतिस्वरूप हो (विधावसि) अपनी गति से सबको गमन कराते हैं। (सूरः न) जैसे सूर्य्य (चित्रः) नानावर्णविशिष्ट (अव्ययानि) रक्षायुक्त पदार्थों को (पव्यया) अपनी शक्ति से पवित्र करते हैं। इसी प्रकार (गभस्तिपूतः) आपकी रोशनी से पवित्र हुए आपके उपासक (अद्रिभिर्नृभिः) आपको साक्षात्कार करनेवाली चित्तवृत्तियों द्वारा (सुतः) आपकी उपासना करते हैं (महे वाजाय) तब आप बड़े ऐश्वर्य के लिये और (धन्याय) धन के लिये (धन्वसि) ऐश्वर्यपद होते हैं ॥३४॥
Connotation: - जिस प्रकार सूर्य्य अपनी किरणों द्वारा स्वाश्रित पदार्थों को प्रकाशित करता है, इसी प्रकार परमात्मा अपनी ज्ञानशक्ति से अपने भक्तों का प्रकाशक है ॥३४॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पवमान) हे सर्वपावकपरमात्मन् ! त्वं (महि, अर्णः) गतिस्वरूपोऽसि अपि च (वि, धावसि) स्वगत्या सर्वं गमयसि। (सूरः, न) सूर्य्यो यथा (चित्रः) अनेकवर्णविशिष्टान् (अव्ययानि) रक्षायुक्तपदार्थान् (पव्यया) स्वशक्त्या पवित्रयति एवं (गभस्तिपूतः) भवत्तेजोभिः पवमाना भवदुपासका भवत उपासनां कुर्वन्ति। (अद्रिभिः, नृभिः) भवत्साक्षात्कारिकाभि-श्चित्तवृत्तिभिः (सुतः) साक्षात्कृतस्त्वं (महे, वाजाय) महैश्वर्य्याय अन्यच्च (धन्याय) धनाय (धन्वसि) ऐश्वर्य्यप्रदो भवसि ॥३४॥