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इषु॒र्न धन्व॒न्प्रति॑ धीयते म॒तिर्व॒त्सो न मा॒तुरुप॑ स॒र्ज्यूध॑नि । उ॒रुधा॑रेव दुहे॒ अग्र॑ आय॒त्यस्य॑ व्र॒तेष्वपि॒ सोम॑ इष्यते ॥

English Transliteration

iṣur na dhanvan prati dhīyate matir vatso na mātur upa sarjy ūdhani | urudhāreva duhe agra āyaty asya vrateṣv api soma iṣyate ||

Pad Path

इषुः॑ । न । धन्व॑न् । प्रति॑ । धी॒य॒ते॒ । म॒तिः । व॒त्सः । न । मा॒तुः । उप॑ । स॒र्जि॒ । ऊर्ध॑नि । उ॒रुधा॑राऽइव । दु॒हे॒ । अग्रे॑ । आ॒ऽय॒ती । अस्य॑ । व्र॒तेषु॑ । अपि॑ । सोमः॑ । इ॒ष्य॒ते॒ ॥ ९.६९.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:69» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:4» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब ईश्वर के साक्षात्कार के साधनों का निरूपण करते हैं।

Word-Meaning: - (धन्वन्) धनुष में (न) जैसे (इषुः) बाण (प्रति धीयते) रक्खे जाते हैं, उसी प्रकार हे जिज्ञासु ! तुमको ईश्वर में (मतिः) बुद्धि को लगाना चाहिए और (न) जैसे (वत्सः) बछड़ा (मातुः) गाय के (ऊधनि) स्तनों के पान के लिए (उप सर्जि) रचा गया है, उसी प्रकार तुम भी ईश्वर की उपासना के लिए रचे गये हो और (अस्य) इस जिज्ञासु के (व्रतेषु) सत्यादि व्रतों में (सोमः) परमात्मा (इष्यते) उपास्यरूप से कहा गया है। बछड़े के (अग्रे) आगे (आयती) उपस्थित (उरुधारेव) गौ (दुहे) जैसे दुही जाती है, उसी प्रकार सन्निहित परमात्मा सब अभीष्टों का प्रदान करता है ॥१॥
Connotation: - जिस प्रकार धन्वी लक्ष्यभेदन करनेवाला मनुष्य इतस्ततः वृत्तियों को रोककर एकमात्र अपने लक्ष्य में वृत्ति लगाता है, इसी प्रकार परमात्मा के उपासकों को चाहिए कि वे सब ओर से वृत्ति को रोककर एकमात्र परमात्मा की उपासना करें ॥१॥
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ARYAMUNI

अथेश्वरसाक्षात्कारसाधनानि निरूप्यन्ते।

Word-Meaning: - (धन्वन्) धनुषि (न) यथा (इषुः) बाणः (प्रति धीयते) सन्धीयते तथा हे जिज्ञासो ! भवतापीश्वरविषये (मतिः) बुद्धिः योज्या। अथ च (न) यथा (वत्सः) गोवत्सः (मातुः) गोः (ऊधनि) पयोधारके (उप सर्जि) सृष्टः तथा त्वमप्युपासनार्थं सृष्टः। अथ च (अस्य) जिज्ञासोः (व्रतेषु) सत्यादिव्रतेषु (सोमः) परमात्मा (इष्यते) उपास्यत्वेनेष्टः। वत्सस्य (अग्रे) पुरतः (आयती) उपस्थिता (उरुधारेव) गौः (दुहे) यथा दुह्यते तथा सन्निहितः परमेश्वरः सर्वान् कामान् ददातीत्यर्थः ॥१॥