यस्य॑ ते द्यु॒म्नव॒त्पय॒: पव॑मा॒नाभृ॑तं दि॒वः । तेन॑ नो मृळ जी॒वसे॑ ॥
English Transliteration
yasya te dyumnavat payaḥ pavamānābhṛtaṁ divaḥ | tena no mṛḻa jīvase ||
Pad Path
यस्य॑ । ते॒ । द्यु॒म्नऽव॑त् । पयः॑ । पव॑मान । आऽभृ॑तम् । दि॒वः । तेन॑ । नः॒ । मृ॒ळ॒ । जी॒वसे॑ ॥ ९.६६.३०
Rigveda » Mandal:9» Sukta:66» Mantra:30
| Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:5
| Mandal:9» Anuvak:3» Mantra:30
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (यस्य) जिस आपका (द्युम्नवत्) दीप्तियुक्त ऐश्वर्य जो (पयः) द्युलोक से दुहा गया है, (दिव आभृतम्) उस ऐश्वर्य से (तेन) हम लोगों के (जीवसे) जीवन के लिए (मृळ) सुख दें ॥३०॥
Connotation: - परमात्मा के ऐश्वर्यरूपी अमृत का जब तक मनुष्य पान नहीं करता, तब तक उसके ऐश्वर्य की वृद्धि कदापि नहीं होती। इसलिए अपने जीवन की वृद्धि के लिए इन्द्रियसंयम द्वारा ईश्वराज्ञा का पालन करता हुआ पुरुष १०० वर्ष जीने की इच्छा करे। इस अभिप्राय से वेद में अन्यत्र भी कहा गया है कि “जीवेम शरदः शतम्, पश्येम शरदः शतम्” इत्यादि। इसी अभिप्राय से मनु-धर्मशास्त्र में कहा है कि “सदाचारेण पुरुषः शतवर्षाणि जीवति” ब्रह्मचर्य आदि व्रतों से मनुष्य सैकड़ों बरस तक जीवित रहता है ॥३०॥ यह छियासठवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (पवमान) सर्वपावक परमात्मन् ! (यस्य) यस्य भवतः (द्युम्नवत्) दीप्तिमत् (पयः) ऐश्वर्यं (दिव आभृतम्) द्युलोकगतो दुग्धमस्ति (तेन) तेनैश्वर्येण (नः) अस्माकं (जीवसे) जीवनं (मृळ) सुखय ॥३०॥ इति षट्षष्टितमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥