ए॒ष सोमो॒ अधि॑ त्व॒चि गवां॑ क्रीळ॒त्यद्रि॑भिः । इन्द्रं॒ मदा॑य॒ जोहु॑वत् ॥
English Transliteration
eṣa somo adhi tvaci gavāṁ krīḻaty adribhiḥ | indram madāya johuvat ||
Pad Path
ए॒षः । सोमः॑ । अधि॑ । त्व॒चि । गवा॑म् । क्री॒ळ॒ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । इन्द्र॑म् । मदा॑य । जोहु॑वत् ॥ ९.६६.२९
Rigveda » Mandal:9» Sukta:66» Mantra:29
| Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:4
| Mandal:9» Anuvak:3» Mantra:29
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (एष सोमः) यह परमात्मा (गवाम्) इन्द्रियों की (अधित्वचि) मनोरूप शक्ति में (अद्रिभिः) इन्द्रियवृत्तियों द्वारा साक्षात्कार किया जाता है। (इन्द्रम्) कर्मयोगी के कर्मक्षेत्र में (जोहुवन्) प्राणापान की गति को हवन करता है और कर्मयोगी को कर्मक्षेत्र में (क्रीडति) क्रीडा कराता है ॥२९॥
Connotation: - परमात्मा की कृपा से ही कर्मयोगी जन प्राण-अपान की गति को रोककर प्राणायाम करते हैं और वही परमात्मा इस ब्रह्माण्डरूपी अद्भुत कर्मक्षेत्र में उनसे सर्वोपरि कर्म कराता है। इसमें “अधित्वचि” नाम मन का है, क्योंकि “इन्द्रियाणां शक्तिं तनोतीति त्वक्” इससे यहाँ आध्यात्मिक यज्ञ का अभिप्राय है। सायणाचार्य ने यहाँ “अधित्वचि” इसके अत्यन्त घृणित अर्थ किये थे। अर्थात् “गवामधित्वचि” इसका “अनडुहचर्मणि” अर्थ किये हैं। सायणाचार्य के मत में अनुडुहचर्म बिछाकर उसके ऊपर सोम कूटा जाता था। विचार करने से यह अर्थ योग्यता से भी विरुद्ध है, क्योंकि सोम किसी कड़ी चीज़ पर ही कूटा जा सकता है, न कि चमड़े पर। कुछ हो, परन्तु “गवामधित्वचि” इसके “अनुडुहचर्मणि” अर्थ करना वेद के आशय से सर्वथा विरुद्ध है ॥२९॥
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Word-Meaning: - (एष सोमः) अयं परमात्मा (गवाम्) इन्द्रियाणां (अधित्वचि) मनोरूपशक्तौ (अद्रिभिः) इन्द्रियवृत्तिभिः साक्षात्क्रियते। (इन्द्रम्) कर्मयोगिनः कर्मक्षेत्रे (जोहुवत्) प्राणापानगतिं निघ्नन्ति। अथ च कर्मयोगिनं कर्मक्षेत्रे (क्रीडति) क्रीडयति। अन्तर्भावितण्यर्थोऽत्र वर्तते ॥२९॥