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पव॑मानस्य ते कवे॒ वाजि॒न्त्सर्गा॑ असृक्षत । अर्व॑न्तो॒ न श्र॑व॒स्यव॑: ॥

English Transliteration

pavamānasya te kave vājin sargā asṛkṣata | arvanto na śravasyavaḥ ||

Pad Path

पव॑मानस्य । ते॒ । क॒वे॒ । वाजि॑न् । सर्गाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । अर्व॑न्तः । न । श्र॒व॒स्यवः॑ ॥ ९.६६.१०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:66» Mantra:10 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:3» Mantra:10


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (कवे) हे सर्वज्ञ ! (वाजिन्) हे सर्वशक्तिमान् परमात्मन् ! (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (ते) आपकी (सर्गाः) अनन्त प्रकार की सृष्टियाँ इस प्रकार (असृक्षत) उत्पन्न होती हैं, (न) जैसे कि (अर्वन्तः) विद्युत् शक्तियाँ अनेक प्रकार से (श्रवस्यवः) प्रवाहित होती हैं  ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा को निमित्तकारण वर्णन किया है कि परमात्मा इस सृष्टि का निमित्त कारण है। उपादानकारण प्रकृति है और निमित्तकारण परमात्मा है। इसी से यहाँ विद्युत् का दृष्टान्त दिया गया है ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (कवे) हे सर्वज्ञ ! (वाजिन्) सर्वशक्तिसम्पन्न जगदीश्वर ! (पवमानस्य) सर्वपवित्रयितः (ते) भवतः (सर्गाः) बहुविधाः सृष्टय एवम् (असृक्षत) उत्पद्यन्ते (न) यथा (अर्वन्तः) विद्युच्छक्तयोऽनेकधा (श्रवस्यवः) प्रवहन्ति ॥१०॥