ऋ॒धक्सो॑म स्व॒स्तये॑ संजग्मा॒नो दि॒वः क॒विः । पव॑स्व॒ सूर्यो॑ दृ॒शे ॥
English Transliteration
ṛdhak soma svastaye saṁjagmāno divaḥ kaviḥ | pavasva sūryo dṛśe ||
Pad Path
ऋ॒धक् । सो॒म॒ । स्व॒स्तये॑ । स॒म्ऽज॒ग्मा॒नः । दि॒वः । क॒विः । पव॑स्व । सूर्यः॑ । दृ॒शे ॥ ९.६४.३०
Rigveda » Mandal:9» Sukta:64» Mantra:30
| Ashtak:7» Adhyay:1» Varga:41» Mantra:5
| Mandal:9» Anuvak:3» Mantra:30
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (ऋधक् सोम) हे अद्वितीय परमात्मन् ! आप (सञ्जग्मानः) सर्वत्र परिपूर्ण हैं। तथा (दिवः) प्रकाशस्वरूप हैं (कवि) सर्वज्ञ हैं। आप (स्वस्तये) हमारे कल्याण के लिये (पवस्व) हमको पवित्र करें। (सूर्यः) हे परमात्मन् ! (दृशे) ज्ञान की वृद्धि के लिये आप हमारे हृदय में आकर विराजमान हों ॥३०॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा ने ज्ञान का उपदेश किया है कि हे उपासक जनों ! आप अपने ज्ञान की वृद्धि के लिये सर्वोपरि शक्ति से अपने मङ्गल की उपासना सदैव करते रहें ॥३०॥ यह ६४ वाँ सूक्त और ४१ वाँ वर्ग समाप्त हुआ। ऋग्वेद के ९वें मण्डल में ७वें अष्टक का पहला अध्याय समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (ऋधक् सोम) हे अद्वितीय जगदीश्वर ! भवान् (सञ्जग्मानः) सर्वत्र परिपूर्णोऽस्ति। तथा (दिवः) प्रकाशस्वरूपोऽस्ति। अथ च (कविः) सर्वज्ञो भवान् (स्वस्तये) कल्याणाय (पवस्व) मां पवित्रयतु। (सूर्यः) सरतीति सूर्यः हे परमात्मन् ! (दृशे) ज्ञानवर्धनाय ममान्तःकरणे विराजितो भवतु ॥३०॥ इति चतुःषष्टितमं सूक्तमेकचत्वारिंशत्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥ इति श्रीमदार्यमुनिनोपनिबद्धे क्संहिताभाष्ये नवममण्डले सप्तमाष्टके प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ॥