आ॒त्मा य॒ज्ञस्य॒ रंह्या॑ सुष्वा॒णः प॑वते सु॒तः । प्र॒त्नं नि पा॑ति॒ काव्य॑म् ॥
English Transliteration
ātmā yajñasya raṁhyā suṣvāṇaḥ pavate sutaḥ | pratnaṁ ni pāti kāvyam ||
Pad Path
आ॒त्मा । य॒ज्ञस्य॑ । रंह्या॑ । सु॒स्वा॒णः । प॒व॒ते॒ । सु॒तः । प्र॒त्नम् । नि । पा॒ति॒ । काव्य॑म् ॥ ९.६.८
Rigveda » Mandal:9» Sukta:6» Mantra:8
| Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:3
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:8
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - पूर्वोक्त परमात्मा (यज्ञस्य आत्मा) यज्ञ का आत्मा है (सुष्वाणः) सर्वप्रेरक और (सुतः) आनन्द का आविर्भावक (रंह्या) सर्वत्र गतिरूप से (पवते) पवित्र करता है, वही परमात्मा (प्रत्नं काव्यम्) प्राचीन काव्य की (निपाति) रक्षा करता है ॥
Connotation: - परमात्मा सब यज्ञों का आत्मा है अर्थात् ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, ध्यानयज्ञ, ज्ञानयज्ञ इत्यादि कोई यज्ञ भी उसकी सत्ता के विना नहीं हो सकता। इसी अभिप्राय से ब्रह्मज्ञान की कई पुस्तकों में परमात्मा को अधियज्ञरूप से वर्णन किया है। जो इस मन्त्र में काव्य शब्द आया है, वह ‘कवते इति कवि:’ इस व्युत्पत्ति से ज्ञानी का अभिधायक है और ‘कवेः कर्म काव्यम्’ इस प्रकार सर्वज्ञ परमात्मा की रचनारूप वेद का नाम यहाँ काव्य है, किसी आधुनिक काव्य का नहीं। तात्पर्य यह है कि वह अपने ज्ञानरूपी वेद-काव्य द्वारा उपदेश करके सृष्टि की रक्षा करता है ॥८॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - पूर्वोक्तः परमात्मा (यज्ञस्य आत्मा) यज्ञस्य आत्माऽस्ति (सुष्वाणः) सर्वस्य प्रेरकः तथा (सुतः) आनन्दस्य आविर्भावयिता (रंह्या) सर्वत्र गत्या (पवते) पुनाति स एवं (प्रत्नं काव्यम्) प्राचीनं काव्यं (निपाति) निरन्तरं रक्षति ॥८॥