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प्र ते॒ धारा॑ अस॒श्चतो॑ दि॒वो न य॑न्ति वृ॒ष्टय॑: । अच्छा॒ वाजं॑ सह॒स्रिण॑म् ॥

English Transliteration

pra te dhārā asaścato divo na yanti vṛṣṭayaḥ | acchā vājaṁ sahasriṇam ||

Pad Path

प्र । ते॒ । धाराः॑ । अ॒स॒श्चतः॑ । दि॒वः । न । य॒न्ति॒ । वृ॒ष्टयः॑ । अच्छ॑ । वाज॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥ ९.५७.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:57» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:1» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:1


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ARYAMUNI

परमात्मा अपने भक्तों को विविध आनन्दों से और दुराचारियों को दारिद्र्य से युक्त करता है, यह कहते हैं।

Word-Meaning: - (दिवः वृष्टयः न) द्युलोक से वृष्टि के समान (ते धाराः) आपके ब्रह्मानन्द की धारायें (असश्चतः) अनेक प्रकार की (यन्ति) विद्वानों के हृदयों में प्रादुर्भूत होती हैं। आप अपने उपासकों को (सहस्रिणम् वाजम्) अनेक प्रकार के ऐश्वर्य के (अच्छ) अभिमुख करिये ॥१॥
Connotation: - जिन लोगों ने सत्कर्मों द्वारा अपने आपको ज्ञान का पात्र बनाया है, उनके अन्तःकरण में परमात्मा की सुधामयी वृष्टि सदैव होती रहती है ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मा स्वभक्तान् विविधानन्दैर्योजयति असतश्च दरिद्रयतीति वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (दिवः वृष्टयः न) द्युलोकतो वृष्टिरिव (ते धाराः) ब्रह्मानन्दाय भवतो धाराः (असश्चतः) अनेकप्रकाराः (यन्ति) विद्वज्जनानामन्तःकरणे प्रादुर्भवति। भवान् स्वोपासकस्य (सहस्रिणम् वाजम्) बहुप्रकारैश्वर्यान् (अच्छ) अभिमुखं करोतु ॥१॥