यत्सोमो॒ वाज॒मर्ष॑ति श॒तं धारा॑ अप॒स्युव॑: । इन्द्र॑स्य स॒ख्यमा॑वि॒शन् ॥
English Transliteration
yat somo vājam arṣati śataṁ dhārā apasyuvaḥ | indrasya sakhyam āviśan ||
Pad Path
यत् । सोमः॑ । वाज॑म् । अर्ष॑ति । श॒तम् । धाराः॑ । अ॒प॒स्युवः॑ । इन्द्र॑स्य । स॒ख्यम् । आ॒ऽवि॒शन् ॥ ९.५६.२
Rigveda » Mandal:9» Sukta:56» Mantra:2
| Ashtak:7» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:2
| Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:2
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (यत् सोमः वाजम् अर्षति) जो परमात्मा बल का प्रदान करता है इससे (अपस्युवः) कर्मयोगी लोग (इन्द्रस्य सख्यम् आविशन्) परमैश्वर्यवाले उस परमात्मा के मैत्रीभाव को प्राप्त होते हुए (शतं धाराः) उसके दिये हुए बल और आनन्द की अनेक धाराओं का उपभोग करते हैं ॥२॥
Connotation: - वास्तव में परमात्मा कोई मित्र या अमित्र नहीं। जो लोग परमात्मा की आज्ञापालन करने से उसके अनुकूल चलते हैं, उनसे वह स्नेह करता है, इसलिए वे मित्र कहलाते हैं और प्रतिकूलवर्ती लोग स्नेह के पात्र नहीं होते, इसलिए अमित्र कहलाते हैं, इसीलिए यहाँ मित्र शब्द आया है। कुछ मानुषी मैत्री के भाव से नहीं ॥२॥
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Word-Meaning: - (यत् सोमः वाजम् अर्षति) यो हि जगदीश्वरः बलं प्रददाति अतः (अपस्युवः) कर्मयोगिजनाः (इन्द्रस्य सख्यम् आविशन्) परमैश्वर्यवतस्तस्य परमात्मनो मैत्रीभावं प्राप्नुवन्तः (शतं धाराः) तेनैव प्रदत्तानि बलानि आमोदधाराश्चोपभुञ्जन्ते ॥२॥