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वन॒स्पतिं॑ पवमान॒ मध्वा॒ सम॑ङ्ग्धि॒ धार॑या । स॒हस्र॑वल्शं॒ हरि॑तं॒ भ्राज॑मानं हिर॒ण्यय॑म् ॥

English Transliteration

vanaspatim pavamāna madhvā sam aṅgdhi dhārayā | sahasravalśaṁ haritam bhrājamānaṁ hiraṇyayam ||

Pad Path

वन॒स्पति॑म् । प॒व॒मा॒न॒ । मध्वा॑ । सम् । अ॒ङ्ग्धि॒ । धार॑या । स॒हस्र॑ऽवल्शम् । हरि॑तम् । भ्राज॑मानम् । हि॒र॒ण्यय॑म् ॥ ९.५.१०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:5» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:10


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ARYAMUNI

अब उक्त यज्ञ में उपासनीय परमात्मा के गुण कथन हैं।

Word-Meaning: - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (मध्वा धारया) सुवृष्टि से (वनस्पतिम्) इस वनस्पति को (समङ्ग्धि) सींचें जो वनस्पति (सहस्रवल्शम्) अनन्त प्रकार की है (हरितम्) हरे रंगवाली है (भ्राजमानम्) नाना प्रकार से देदीप्यमान है और (हिरण्ययम्) सुन्दर ज्योतिवाली है ॥१०॥
Connotation: - परमात्मा से प्रार्थना है कि वह चराचर ब्रह्माण्डगत वनस्पति का सिञ्चन करे। इस स्वभावोक्ति अलङ्कार द्वारा परमात्मा के वृष्टिकर्तृत्वभाव का निरूपण किया है। इसी प्रकार अन्यत्र भी वेदमन्त्रों में “कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः” अथ ३।६। २७।५। इत्यादि स्थलों में वनस्पति को परमात्मा के ग्रीवास्थानी वर्णन किया है। इसी प्रकार वनस्पति को विराट्स्वरूप की शोभा वर्णन करते हुए ईश्वर से स्वभावसिद्ध प्रार्थना है ॥१०॥
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ARYAMUNI

अथोक्तज्ञानयज्ञ उपासनीयस्य परमात्मनो गुणा वर्ण्यन्ते।

Word-Meaning: - (पवमान) हे सर्वस्य पावयितः परमात्मन् ! भवान् (मध्वा, धारया) सुष्ठुवर्षेण (वनस्पतिम्) इमं वनस्पतिं (समङ्ग्धि) सिञ्चतु कथम्भूतम् (सहस्रवल्शम्) अनेकशाखम् (हरितम्) हरितवर्णं (भ्राजमानम्) देदीप्यमानं (हिरण्ययम्) भास्वरं तं सिञ्चतु ॥१०॥