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परि॑ णः शर्म॒यन्त्या॒ धार॑या सोम वि॒श्वत॑: । सरा॑ र॒सेव॑ वि॒ष्टप॑म् ॥

English Transliteration

pari ṇaḥ śarmayantyā dhārayā soma viśvataḥ | sarā raseva viṣṭapam ||

Pad Path

परि॑ । नः॒ । श॒र्म॒ऽयन्त्या॑ । धार॑या । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । सर॑ । र॒साऽइ॑व । वि॒ष्टप॑म् ॥ ९.४१.६

Rigveda » Mandal:9» Sukta:41» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:31» Mantra:6 | Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:6


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे परमात्मन् ! (रसेव विष्टपम्) जिस प्रकार रस से अर्थात् ब्रह्म से लोक व्याप्त हो रहा है, उसी प्रकार (शर्मयन्त्या धारया) सुख देनेवाली आनन्द की धारासहित (नः विश्वतः परिसर) मेरे हृदय में आप भली प्रकार निवास कीजिये ॥६॥
Connotation: - आनन्दस्त्रोत एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये आनन्दाभिलाषी जनों को चाहिये कि उसी आनन्दाम्बुधि का रसपान करके अपने आपको आनन्दित करें ॥६॥ यह ४१ वाँ सूक्त और ३१ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे परमात्मन् ! (रसेव विष्टपम्) लोकं व्यापकतयाधितिष्ठत् ब्रह्मेव (शर्मयन्त्या धारया) शर्म प्रयच्छन्त्यानन्दधारया (नः विश्वतः परिसर) मम हृदयं सर्वतो व्याप्नुहि ॥६॥ इत्येकचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥