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ए॒ष शु॒ष्म्यदा॑भ्य॒: सोम॑: पुना॒नो अ॑र्षति । दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ॥

English Transliteration

eṣa śuṣmy adābhyaḥ somaḥ punāno arṣati | devāvīr aghaśaṁsahā ||

Pad Path

ए॒षः । शु॒ष्मी । अदा॑भ्यः । सोमः॑ । पु॒ना॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । दे॒व॒ऽअ॒वीः । अ॒घ॒शं॒स॒ऽहा ॥ ९.२८.६

Rigveda » Mandal:9» Sukta:28» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:18» Mantra:6 | Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:6


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (एषः) यह (शुष्मी) बलवाला परमात्मा (अदाभ्यः) दम्भ से अप्राप्य है (सोमः) सौम्यस्वभाववाला (पुनानः) पवित्रताकारक (सर्वत्र) व्याप्त हो रहा है (देवावीः) देवताओं का रक्षक तथा (अघशंसहा) अघशंसियों का नाश करनेवाला है ॥६॥
Connotation: - जो लोग स्वयं पापों अथवा पापियों की प्रशंसा करते हैं, उनको परमात्मा कदापि प्राप्त नहीं होता। परमात्मप्राप्ति के लिये सदैव सरल प्रकृति होनी चाहिये। तात्पर्य यह है कि परमात्मप्राप्ति विना दैवी सम्पत्ति के नहीं होती। दैवी सम्पत्ति के गुण ये हैं−तेज, तेजस्वी होना, धृति-दृढ़ता, क्षमा, शौच, अद्रोह, अहिंसा, सत्य, अक्रोध इत्यादि अनेक प्रकार के दैवी सम्पत्ति के गुण हैं और जो लोग आसुरी सम्पत्तिवाले हैं, उनमें निम्नलिखित अवगुण होते हैं−दम्भ दर्प=गर्व, अभिमान, क्रोध, पारुष्य इत्यादि। इस मन्त्र में परमात्मा ‘अदाभ्यः’ पद से इस बात का उपदेश करता है कि दम्भ दर्पादि छोड़कर तुम लोग सन्मार्ग का ग्रहण करो ॥६॥ यह अट्ठाईसवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (एषः) अयं परमात्मा (शुष्मी) प्रबलः परमात्मा (अदाभ्यः) दम्भरहितः (सोमः) सौम्यस्वभावः (पुनानः) पविता (अर्षति) सर्वं व्याप्नोति (देवावीः) देवरक्षकः (अघशंसहा) दुरात्मनां विनाशयिता चास्ति ॥६॥ इति अष्टाविंशतितमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥