ए॒ष शु॒ष्म्य॑सिष्यदद॒न्तरि॑क्षे॒ वृषा॒ हरि॑: । पु॒ना॒न इन्दु॒रिन्द्र॒मा ॥
English Transliteration
eṣa śuṣmy asiṣyadad antarikṣe vṛṣā hariḥ | punāna indur indram ā ||
Pad Path
ए॒षः । शु॒ष्मी । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । अ॒न्तरि॑क्षे । वृषा॑ । हरिः॑ । पु॒ना॒नः । इन्दुः॑ । इन्द्र॑म् । आ ॥ ९.२७.६
Rigveda » Mandal:9» Sukta:27» Mantra:6
| Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:6
| Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:6
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (एषः) यह (शुष्मी) बलवान् परमात्मा (अन्तरिक्षे असिष्यदत्) अन्तरिक्ष में सर्वत्र व्याप्त हो रहा है (वृषा) सब कामनाओं का देनेवाला और (हरिः) दुख का हरनेवाला, (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाला, (इन्दुः) सर्वत्र प्रकाशमान, (इन्द्रम् आ) कर्मयोगी पुरुष को प्राप्त होता है ॥६॥
Connotation: - सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्म जो सर्वव्यापक और सब कामनाओं का देनेवाला है, वह अपने निवास का स्थान एकमात्र कर्मयोगी पुरुषों को समझता है। यद्यपि ब्रह्म सर्वव्यापक है, तथापि विशेषाभिव्यक्ति उसकी कर्मयोगियों के हृदय में ही होती है, अन्यत्र नहीं। तात्पर्य यह है कि कर्मयोगी पुरुष अपने कर्मों द्वारा उसकी आज्ञाओं को पालन करके दिखला देता है, अन्य लोग आलस्य में पड़े-पड़े ही समय को बिता देते हैं, इसलिये इस मन्त्र में कर्मयोगी पुरुष को ज्ञान का मुख्यपात्र निरूपण किया गया है ॥६॥ यह २७ वाँ सूक्त और १७ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (एषः) अयं (शुष्मी) बलवान् परमात्मा (अन्तरिक्षे असिष्यदत्) सर्वमन्तरिक्षं व्याप्नोति (वृषा) सर्वकामप्रदः (हरिः) दुखस्य हर्ता (पुनानः) सर्वस्य पविता (इन्दुः) सर्वत्र प्रकाशमानः (इन्द्रम् आ) कर्मयोगिपुरुषान् प्राप्नोति ॥६॥ इति सप्तविंशतितमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥