प्र सोमा॑सो अधन्विषु॒: पव॑मानास॒ इन्द॑वः । श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ॑ञ्जत ॥
English Transliteration
pra somāso adhanviṣuḥ pavamānāsa indavaḥ | śrīṇānā apsu mṛñjata ||
Pad Path
प्र । सोमा॑सः । अ॒ध॒न्वि॒षुः॒ । पव॑मानासः । इन्द॑वः । श्री॒णा॒नाः । अ॒प्ऽसु । मृ॒ञ्ज॒त॒ ॥ ९.२४.१
Rigveda » Mandal:9» Sukta:24» Mantra:1
| Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:1
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:1
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (सोमासः) सोम्य स्वभाव को उत्पन्न करनेवाले परमात्मा के आह्लादादि गुण (पवमानासः) जो मनुष्य को पवित्र कर देनेवाले हैं, (इन्दवः) जो दीप्तिवाले हैं, जो कर्मयोगियों में (प्र) प्रकर्षता से आनन्द (अधन्विषुः) उत्पन्न करनेवाले हैं, (श्रीणानाः) सेवन किये हुए (अप्सु) शरीर मन और वाणी तीनों प्रकार के यत्नों में (मृञ्जत) शुद्धि को उत्पन्न करते हैं ॥१॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम परमात्मा के गुणों का चिन्तन करके अपने मन वाणी तथा शरीर को शुद्ध करो। जिस प्रकार जल शरीर की शुद्धि करता है, परमात्मोपासन मन की शुद्धि करता है और स्वाध्याय अर्थात् वेदाध्ययन वाणी की शुद्धि करता है, इसी प्रकार परमात्मा के ब्रह्मचर्य्यादि गुण शरीर मन और वाणी की शुद्धि करते हैं। ‘ब्रह्म’ नाम यहाँ वेद का है। इस व्रत में इन्द्रियों का संयम भी करना अत्यावश्यक होता है, इसलिये ब्रह्मचर्य्य का अर्थ जितेन्द्रियता भी है। मुख्य अर्थ इसके वेदाध्ययन व्रत के ही हैं। वेदाध्ययन व्रत इन्द्रिय संयमद्वारा शरीर की शुद्धि करता है, ज्ञानद्वारा मन की शुद्धि करता है और अध्ययनद्वारा वाणी की शुद्धि करता है, इसी प्रकार परमात्मा के सत्य ज्ञान और अनन्तादि गुण आह्लाद उत्पन्न करके मन वाणी तथा शरीर की शुद्धि के कारण होते हैं। इसी अभिप्राय से उपनिषदों ने “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” तै० २।२। इत्यादि वाक्यों में परमात्मा के सत्यादि गुणों का वर्णन किया है ॥१॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (सोमासः) सौम्यस्वभावस्य कर्तारः परमात्मन आह्लादादिगुणाः (पवमानासः) ये च पवित्रकर्तारः (इन्दवः) दीप्तिमन्तश्च ये च कर्मयोगिषु (प्राधन्विषुः) प्रकर्षतयोत्पद्यन्ते ते (श्रीणानाः) सेविताः सन्तः (अप्सु) वाङ्मनःशरीराणां त्रिविधानामपि यत्नानां (मृञ्जत) शुद्धिमुत्पादयन्ति ॥१॥