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अ॒स्य पी॒त्वा मदा॑ना॒मिन्द्रो॑ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति । ज॒घान॑ ज॒घन॑च्च॒ नु ॥

English Transliteration

asya pītvā madānām indro vṛtrāṇy aprati | jaghāna jaghanac ca nu ||

Pad Path

अ॒स्य । पी॒त्वा । मदा॑नाम् । इन्द्रः॑ । वृ॒त्राणि॑ । अ॒प्र॒ति । ज॒घान॑ । ज॒घन॑त् । च॒ । नु ॥ ९.२३.७

Rigveda » Mandal:9» Sukta:23» Mantra:7 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:7 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य) इस परमात्मा के आनन्द को (पीत्वा) पी कर जो (मदानाम्) सब प्रकार के मदों को तिरस्कार करके विराजमान है (इन्द्रः) कर्मयोगी पुरुष (वृत्राणि) अज्ञानों को (अप्रति) प्रतिपक्षी बन कर (जघान) नाश करता है (नु) निश्चय करके तुम उसी परमात्मा के आनन्द का पान करो ॥७॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करता है कि हे मानुषों ! सब आनन्दों से बढ़ कर ब्रह्मानन्द है। इस आनन्द के आगे सब प्रकार के मादक द्रव्य भी निरानन्द प्रतीत होते हैं। वास्तव में मदकारक वस्तु मनुष्य की बुद्धि का नाश करके आनन्ददायक प्रतीत होती है और ब्रह्मानन्द का भान किसी प्रकार के मद को उत्पन्न नहीं करता, किन्तु आह्लाद को उत्पन्न करता है, इसीलिये सब प्रकार के मद उसके सामने तुच्छ हो जाते हैं। जिस प्रकार राजमद, धनमद, यौवनमद, रूपमद इत्यादि सब मद विद्यानन्द के आगे तुच्छ प्रतीत होते हैं, इसी प्रकार विद्यानन्द योगानन्द इत्यादि आनन्द ब्रह्मानन्द के आगे सब फीके हो जाते हैं। इसी अभिप्राय से मन्त्र में कहा है कि “मदानाम्” सब मदों में से सच्चा मद एकमात्र परमात्मा का आनन्द है। इसी अभिप्राय से कहा है कि “रसो ह्येव हि स रसं ह्येव लब्ध्वा आनन्दी भवति” परमात्मा आनन्दस्वरूप है। उस आनन्दस्वरूप को लाभ करके पुरुष आनन्दित होता है ॥७॥ यह तेईसवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अस्य) अस्य परमात्मन आनन्दम् (पीत्वा) अनुभूय (मदानाम्) यो हि परमात्मा सर्वविधमदान् तिरस्कृत्य विराजते (इन्द्रः) कर्मयोगी (वृत्राणि) अज्ञानानां (अप्रति) प्रतिपक्षी भूत्वा (जघान) तानि नाशयायास (जघनच्च) नाशयति (नु) निश्चयं तदानन्दमेव पिब ॥७॥ इति त्रयोविंशं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥