म॒हान्तं॑ त्वा म॒हीरन्वापो॑ अर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः । यद्गोभि॑र्वासयि॒ष्यसे॑ ॥
English Transliteration
mahāntaṁ tvā mahīr anv āpo arṣanti sindhavaḥ | yad gobhir vāsayiṣyase ||
Pad Path
म॒हान्त॑म् । त्वा॒ । म॒हीः । अनु॑ । आपः॑ । अ॒र्ष॒न्ति॒ । सिन्ध॑वः । यत् । गोभिः॑ । वा॒स॒यि॒ष्यसे॑ ॥ ९.२.४
Rigveda » Mandal:9» Sukta:2» Mantra:4
| Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:4
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:4
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (महान्तम्) सबसे बड़े (त्वा) तुमको (महीः) पृथिवी और (आपः) जल तथा (सिन्धवः) स्यन्दनशील सब पदार्थ (अर्षन्ति) आश्रय किये हुए हैं (यत्) क्योंकि तुम (गोभिः) अपनी शक्तियों से सबका (वासयिष्यसे) नियमन करते हो ॥४॥
Connotation: - परमात्मा की शक्ति में पृथिवी, जल, वायु इत्यादि सम्पूर्ण तत्त्व तथा लोक-लोकान्तर परिभ्रमण करते हैं। उसी महतोभूत के आश्रित होकर यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ठहरा हुआ है। इसका वर्णन “एतस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद् यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदः” “एतस्य वाक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्य्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठतः” “भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्य्यः भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः” इत्यादि द्वारा जिसका ब्रहमाण्ड और उपनिषदों में वर्णन किया गया है, उसी पूर्ण पुरुष का वर्णन इस मन्त्र में है। मालूम होता है कि पूर्वोक्त प्रमाण, जो परमात्मा को सर्वाधार वर्णन करते हैं, वे इसी मन्त्र के आधार पर हैं ॥४॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (महान्तम्) सर्वतो महान्तम् (त्वा) भवन्तम् (महीः) पृथिवी (आपः) जलं तथा (सिन्धवः) स्यन्दनशीलाः पदार्थाः (अर्षन्ति) आश्रयन्ति (यत्) यतस्त्वम् (गोभिः) स्वशक्तिभिः सर्वम् (वासयिष्यसे) नियमयसि ॥४॥