अधु॑क्षत प्रि॒यं मधु॒ धारा॑ सु॒तस्य॑ वे॒धस॑: । अ॒पो व॑सिष्ट सु॒क्रतु॑: ॥
English Transliteration
adhukṣata priyam madhu dhārā sutasya vedhasaḥ | apo vasiṣṭa sukratuḥ ||
Pad Path
अधु॑क्षत । प्रि॒यम् । मधु॑ । धारा॑ । सु॒तस्य॑ । वे॒धसः॑ । अ॒पः । व॒सि॒ष्ट॒ । सु॒ऽक्रतुः॑ ॥ ९.२.३
Rigveda » Mandal:9» Sukta:2» Mantra:3
| Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:3
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:3
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - वह परमात्मा (अपः) अपने गुण-कर्म्म-स्वभाव से (वसिष्ट) सबको अपने वशीभूत कर रहा है, वह (सुक्रतुः) सत्कर्मोंवाला है (सुतस्य वेधसः) अभिलषित पदार्थों का देनेवाला है और (मधु, धारा) अमृत की वृष्टियों से और (प्रियम्) प्रिय वस्तुओं से (अधुक्षत) परिपूर्ण करनेवाला है ॥३॥
Connotation: - परमात्मा के गुण-कर्म्म-स्वभाव ऐसे हैं कि जिससे एकमात्र परमात्मा ही सुकर्म्मा कहा जा सकता है अर्थात् परमात्मा के ज्ञानादि सदा एकरस हैं, इसी अभिप्राय से उपनिषदों में यह कथन है कि “न तस्य कार्य्यं करणञ्च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते। परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ॥“ श्वे० ६।८॥ न उस से मट्टी के घट के समान कोई कार्य्य उत्पन्न होता है और न वह मट्टी के समान अन्य किसी पदार्थ का कारण है, किन्तु वह अपनी स्वाभाविक शक्तियों से इस संसार की रचना करता हुआ सर्वकर्ता और सर्वनियन्ता कहलाता है ॥३॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - स परमात्मा (अपः) स्वकीयगुणकर्म्मस्वभावैः (वसिष्ट) सर्वान् वशे करोति सः (सुक्रतुः) सत्कर्म्मास्ति (सुतस्य, वेधसः) इष्टस्य पदार्थस्य दाता च (मधु, धारा) अमृतवर्षैः (प्रियम्) प्रियवस्तुभिश्च (अधुक्षत) परिपूर्णं करोति ॥३॥