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गो॒षा इ॑न्दो नृ॒षा अ॑स्यश्व॒सा वा॑ज॒सा उ॒त । आ॒त्मा य॒ज्ञस्य॑ पू॒र्व्यः ॥

English Transliteration

goṣā indo nṛṣā asy aśvasā vājasā uta | ātmā yajñasya pūrvyaḥ ||

Pad Path

गो॒ऽसाः । इ॒न्दो॒ इति॑ । नृ॒ऽसाः । अ॒सि॒ । अ॒श्व॒ऽसाः । वा॒ज॒ऽसाः । उ॒त । आ॒त्मा । य॒ज्ञस्य॑ । पू॒र्व्यः ॥ ९.२.१०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:2» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:10


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! आप (यज्ञस्य) सम्पूर्ण यज्ञों के (पूर्व्यः) आदि कारण हैं। आप हमको (गोषाः) गायें (अश्वसाः) घोड़े (वाजसाः) अन्न (नृषाः) मनुष्य (उत) और (आत्मा) आत्मिक बल इन सब वस्तुओं के देनेवाले (असि) हो ॥१०॥
Connotation: - हे परमात्मन्। आपकी कृपा से अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों फलों की प्राप्ति होती है। जिन पर आप कृपालु होते हैं, उनको हृष्ट-पुष्ट गौ और बलीवर्द तथा उत्तमोत्तम घोड़े एव नाना प्रकार की सेनायें इत्यादि अभ्युदय के सब साधन देते हैं और जिन पर आपकी कृपा होती है, उन्हीं को आत्मिक बल देकर यम नियमों द्वारा संयमी बनाकर निःश्रेयस प्रदान करते हैं ॥१०॥१९॥ दूसरा सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! भवान् (यज्ञस्य) समस्तस्य यज्ञस्य (पूर्व्यः) आदिकारणमस्ति। भवान् अस्मभ्यम् (गोषाः) गवाम् (अश्वसाः) अश्वानाम् (वाजसाः) अन्नानाम् (नृषाः) मनुष्याणाम् (उत) किञ्च (आत्मा) आत्मबलस्य दाता (असि) असि ॥१०॥ द्वितीयसूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥