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त्वं विप्र॒स्त्वं क॒विर्मधु॒ प्र जा॒तमन्ध॑सः । मदे॑षु सर्व॒धा अ॑सि ॥

English Transliteration

tvaṁ vipras tvaṁ kavir madhu pra jātam andhasaḥ | madeṣu sarvadhā asi ||

Pad Path

त्वम् । विप्रः॑ । त्वम् । क॒विः । मधु॑ । प्र । जा॒तम् । अन्ध॑सः । मदे॑षु । स॒र्व॒ऽधाः । अ॒सि॒ ॥ ९.१८.२

Rigveda » Mandal:9» Sukta:18» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (त्वम् विप्रः) ‘विप्राति क्षिप्नोतीति विप्रः’ आप सबके प्रेरक हैं और (त्वम् कविः) “कवते जानाति सर्वमिति कविः” आप सर्वज्ञ हैं (मधु प्रजातम् अन्धसः) और अन्नादिकों में रस आप ही ने उत्पन्न किया है और (मदेषु) हर्षयुक्त वस्तुओं में (सर्वधाः) सब प्रकार की शोभा करानेवाले (असि) आप ही हैं ॥२॥
Connotation: - परमात्मा ने अपनी विचित्र शक्तियों से नानाविध के रस उत्पन्न किये हैं और नानाप्रकार के ऐश्वर्य उत्पन्न किये हैं। वस्तुतः परमात्मा ही सब एश्वर्यों का अधिष्ठान और सब रसों की खान है ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (त्वम् विप्रः) त्वं सर्वप्रेरकः तथा (त्वम् कविः) त्वं सर्वज्ञश्च (मधु प्रजातम् अन्धसः) अन्नादिषु रसानामुत्पादकस्त्वमेव तथा च (मदेषु) हर्षजनकवस्तुषु (सर्वधाः) सर्वविधशोभानां जनकः (असि) त्वमेवासि ॥२॥