अन॑प्तम॒प्सु दु॒ष्टरं॒ सोमं॑ प॒वित्र॒ आ सृ॑ज । पु॒नी॒हीन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥
English Transliteration
anaptam apsu duṣṭaraṁ somam pavitra ā sṛja | punīhīndrāya pātave ||
Pad Path
अन॑प्तम् । अ॒प्ऽसु । दु॒स्तर॑म् । सोम॑म् । प॒वित्रे॑ । आ । सृ॒ज॒ । पु॒नी॒हि । इन्द्रा॑य । पात॑वे ॥ ९.१६.३
Rigveda » Mandal:9» Sukta:16» Mantra:3
| Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:3
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:3
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! आप (पवित्रे) श्रेष्ठ लोगों के लिये (सोमम्) सोम रस को उत्पन्न करो, जो (अनप्तम्) क्रूरस्वभाववालों के लिये अप्राप्य है और (अप्सु) जिसका संस्कार दूध में किया जाता है और जो (दुस्तरम्) आसुरी सम्पत्तिवालों के लिये दुस्तर है, (इन्द्राय) कर्मयोगी के (पातवे) पीने के लिये ऐसे रस को तुम पवित्र बनाओ ॥३॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम दैवी सम्पत्ति के देनेवाले अर्थात् सौम्य स्वभाव के बनानेवाले सोम रस की प्रार्थना करो, ताकि तुम कर्मयोगियों को कर्मों में तत्पर करने के लिये पर्याप्त हो ॥ तात्पर्य यह है कि जो पुरुष अन्नादि ओषधियों के रसों का पान करके अपने कामों में तत्पर होते हैं, वे पूरे-२ कर्मयोगी बन सकते हैं और जो लोग मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, वे अपनी इन्द्रियों की शक्तियों को नष्ट-भ्रष्ट करके स्वयं भी नाश को प्राप्त हो जाते हैं ॥३॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! भवान् (पवित्रे) श्रेष्ठजनाय (सोमम्) सोमरसम् उत्पादयतु यः (अनप्तम्) क्रूरकर्मभिः अप्राप्यं (अप्सु) यस्य संस्कारः दुग्धेषु क्रियते अन्यच्च (दुस्तरम्) आसुरसम्पत्तिमद्भिः दुस्तरमस्ति (इन्द्राय) कर्मयोगिनः (णः) (पातवे) पानाय उक्तविधं रसं भवान् उत्पादयतु ॥३॥